Kailash Mansarovar Yatra 2025
सदियों से कैलाश पर्वत को महादेव का निवास स्थान माना जाता रहा है। शिव पुराण, स्कंद पुराण और विष्णु पुराण जैसे हिंदू धर्मग्रंथों के अनुसार, कैलाश पर्वत भगवान शिव का निवास क्षेत्र है, जहां वह माता पार्वती के साथ विराजते हैं। मगर, अक्सर यह सवाल उठता है कि कैलाश पर्वत भारत में क्यों नहीं है? 1951 में तिब्बत पर कब्ज़ा करने के बाद चीन कैलाश पर्वत की तीर्थयात्रा की अनुमति देता रहा है। 1954 के चीन-भारतीय समझौते ने तीर्थयात्रा की अनुमति दी। हालांकि, 1959 के तिब्बती विद्रोह और 1962 के चीन-भारत युद्ध के कारण कई बार सीमाएं और यात्रा बंद कर दी गईं। कोरोना महामारी के दौर में भी ये यात्रा बंद रही। अब भारत-चीन के बीच हुए एक अहम समझौते में इस यात्रा पर फिर से सहमति बनी है। ऐसे में 2025 में कैलाश मानसरोवर यात्रा एक बार फिर शुरू हो सकती है। जानते हैं पूरी कहानी।
क्या है कैलाश मानसरोवर तीर्थ, कितनी ऊंची है चोटी
इतिहासकार के अनुसार, कैलाश मानसरोवर तीर्थ को अष्टापद, गणपर्वत और रजतगिरि भी कहते हैं। कैलाश के बर्फ से ढंके 6,638 मीटर (21,778 फुट) ऊंचे शिखर और उससे लगे मानसरोवर का यह तीर्थ है। इस प्रदेश को मानसखंड कहते हैं। पौराणिक कथाओं के अनुसार, जैन धर्म के भगवान ऋषभदेव ने यहीं निर्वाण प्राप्त किया। युधिष्ठिर के राजसूय यज्ञ में इस प्रदेश के राजा ने उत्तम घोड़े, सोना, रत्न और याक के पूंछ के बने काले और सफेद चामर भेंट किए थे। कहा जाता है कि इस पर्वत का निर्माण 30 मिलियन वर्ष पहले हुआ था। कैलाश मानसरोवर यात्रा एक पवित्र तीर्थयात्रा है, जिसे मोक्ष का प्रवेश द्वार माना जाता है।
मानसरोवर झील से निकलती हैं ब्रह्मपुत्र, सिंधु और सतलुज
कैलाश पर्वत तिब्बत में स्थित एक पर्वत श्रेणी है। इसके पश्चिम और दक्षिण में मानसरोवर व राक्षसताल झील हैं। माना जाता है कि कैलाश पर्वत श्रृंखला का निर्माण हिमालय पर्वत श्रृंखला के शुरुआती चरणों के दौरान हुआ था। कैलाश पर्वतमाला के निर्माण के कारण हुए भूगर्भीय परिवर्तन से चार नदियां भी जन्मीं, जो अलग-अलग दिशाओं में बहती हैं-ये हैं सिंधु, करनाली, यारलुंग त्सांगपो यानी ब्रह्मपुत्र और सतलुज। कैलाश पर्वतमाला कश्मीर से लेकर भूटान तक फैली हुई है। ल्हा चू और झोंग चू के बीच कैलाश पर्वत है जिसके उत्तरी शिखर का नाम कैलाश है। इस शिखर की आकृति विराट शिवलिंग की तरह है
अभी क्या है कैलाश पर्वतमाला की स्थिति
कैलाश मानसरोवर का क्षेत्र तिब्बत में पड़ता है, जिस पर ब्रिटिश अभियान 1903 में शुरू हुआ और 1904 तक चला। अंग्रेजों ने राजधानी ल्हासा पर आक्रमण किया। अंग्रेजों को इस पर नियंत्रण पाने के लिए कड़ी मशक्कत करनी पड़ी। तिब्बत को 24 अक्टूबर, 1951 को पीपुल्स रिपब्लिक ऑफ चाइना ने अपने अधीन कर लिया था। कैलाश पर्वतमाला की सबसे ऊंची चोटियों में से एक कैलाश पर्वत है, जो ट्रांस-हिमालय का एक हिस्सा है, जो चीन के तिब्बत स्वायत्त क्षेत्र में स्थित है। यह पर्वत चीन, भारत और नेपाल के पश्चिमी ट्राई जंक्शन पर स्थित है। यात्रा का आयोजन विदेश मंत्रालय करता है।
कैलाश पर्वत का हिंदू, बौद्ध और जैन तीनों के लिए महत्वपूर्ण
कहते हैं कि कैलाश पर्वत का विभिन्न संस्कृतियों और धर्मों में बहुत महत्व है। हिंदुओं के लिए यह भगवान शिव का पवित्र निवास है। बौद्ध धर्म में कैलाश पर्वत को कांग रिनपोछे यानी बर्फ के अनमोल रत्न के रूप में नवाजा जाता है। जिसे ज्ञान और निर्वाण की प्राप्ति से जुड़ा एक पवित्र स्थल माना जाता है। बौद्ध धर्म में कैलाश पर्वत को ‘मेरु पर्वत’ के नाम से जाना जाता है और इसे डेमचोक का निवास स्थान माना जाता है। जैनियों के लिए कैलाश पर्वत को अष्टपद के रूप में जाना जाता है। यह उनके पहले तीर्थंकर भगवान ऋषभनाथ से जुड़ा हुआ है। यह आध्यात्मिक जागृति और जन्म और मृत्यु के चक्र से मुक्ति के स्थान के रूप में महत्व रखता है।
क्या कभी भारत के अधिकार क्षेत्र में था कैलाश मानसरोवर
पूर्व राजदूत पी स्टोबदान ने अपने एक आर्टिकल में लिखा है कि कैलाश मानसरोवर और इसके आसपास का इलाका 1960 के दशक तक भारत के अधिकार क्षेत्र में आता था। लद्दाख के राजा त्सावांग नामग्याल का शासन क्षेत्र कैलाश मानसरोवर के मेन्सर नाम की जगह तक था। ये पूरा इलाका भारत, चीन से लेकर नेपाल की सीमा तक फैला था। 1911 और 1921 की जनगणना में कैलाश मानसरोवर वाले इलाके के मेन्सर गांव में 44 घर होने की बात सरकारी रिकॉर्ड में है। 1958 के जम्मू-कश्मीर समझौते के मुताबिक मेन्सर चीन के कब्जे में चला गया। यह इलाका चीन कब्जे वाले लद्दाख तहसील के 110 गांवों में शामिल था।
जब चीन ने पहली बार कैलाश मानसरोवर को अपने हिस्से में दिखाया
1959 में पहली बार चीन ने अपने नक्शे में सिक्किम, भूटान से लगते कैलाश मानसरोवर के बड़े हिस्से को अपने अधिकार क्षेत्र में दिखाया था। तब तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू ने संसद के बाहर और भीतर इसका जोरदार विरोध दर्ज कराया। पूर्व राजदूत स्टोबदान ने लिखा है कि नेहरू ने ये जमीन भले ही चीन को सौंपी न हो, लेकिन वो इसे बचा नहीं पाए।
पिथौरागढ़ के हिंदू राजा अभय पाल के अंतर्गत था कैलाश क्षेत्र
पिथौरागढ़ जिला उत्तराखंड के कुमाऊं मंडल के अंर्तगत पड़ता है, वर्तमान कुमाऊं, गढ़वाल नेपाल और तिब्बत का संपूर्ण क्षेत्र कभी पाल रियासत के अंर्तगत आता था और पिथौरागढ़ के तब के राजा अभय पाल सिंह देव का शासन नेपाल और तिब्बत तक था जो कि दस्तावेजों में उपलब्ध है।
वर्तमान में रियासत के वंशज अस्कोट नरेश श्री भानुराज सिंह पाल बताते हैं कि कैलाश और तिब्बत का क्षेत्र अस्कोट रियासत के अंर्तगत ही थे।अस्कोट राजपरिवार द्वारा ही सभी कैलाश यात्रियों की व्यवस्था करवायी जाती थी और राजा की सेना ही श्रद्धालुओं की सेवा और सुरक्षा का इंतजाम देखती थी। अलग-2 स्तर पर पड़ावों का निर्माण किया गया था और यह यात्रा अपने आप में अनूठी और परित्रता से परिपूर्ण थी।
आज भी उनके पास सभी दस्तवेज उपलब्ध हैं जो भारत सरकार के दावों को स्थिर करते हैं लेकिन आजतक किसी सरकार ने उन दस्तावेजों को देखने तक की गंभीरता नहीं दिखाई, जबकी यह संपूर्ण क्षेत्र भारत का ही है। सरकार चाहे तो कम से कम मामले को अंतराष्ट्रीय स्तर अथवा यूनाईटेड नेशंस में वैध दस्तावेजों के सहारे ले जा सकती है।
यह क्षेत्र पूर्व से ही भारत का हिस्सा रहा है जबकि नेपाल का हिस्सा अस्कोट रियासत के ही बाद के वंसजो के अंतर्गत काली नदी को सीमा मानकर दूसरे भाई के अंतर्गत हो गया था जो आजादी के बाद से भारत से दूर हो गया अन्यथा हमारे देश, नेपाल और तिब्बत में कोई भी अधिक भेद नहीं है।
इसकी पूरी बातें कुमाऊं का इतिहास नमक किताब और एटकिंसन की गजेटियर ऑफ उत्तराखंड में भी वर्णित है लेकिन हमारे पास राजाओं के इतिहास की पूरी जानकारी संजोकर राखी गई है। वे बताते हैं कि भौगोलिक और सांस्कृतिक रूप में हम सभी हिमालय वासी एक ही हैं और हमारा मूल भी एक ही है।