नई टिहरी में शराब पीकर गाड़ी चला रहे सरकारी कर्मचारी ने चार लोगों को कुचल दिया, टिहरी में शाम को किनारे टहल रहे महिला और उनकी भतीजियों को एक तेज रफ्तार कार, जिसका चालक नशे में धुत होकर गाड़ी चला रहा था,ने कुचल दिया जिसमें मौके पर ही कुछ की मौत होना बताया जा रहा है।
यूं तो प्रशासन द्वारा बार बार मीटिंग में सड़क हादसों को रोकने के लिए ये करना-वो करने की बातें कही जाती है किंतु खुलेआम शराब पीकर सड़कों पर जो गाड़ियां दौड़ रही है, उसमें प्रशासन का कोई कंट्रोल नहीं है और खुलेआम, दिनदहाड़े नशे में वाहन को रौंदते हुए एक सरकारी कर्मचारी गाड़ी चला रहा है,तो समझ लीजिए की किस स्थिति में उत्तराखंड उत्तराखण्ड है।
चलते लोगों को गाड़ी से कुचलकर मार दिया जा रहा और वह भी सरकारी कर्मचारी द्वारा,जिसके ऊपर समाज की सेवा की जिम्मेदारी है।देहरादून में बैठकर अधिकारी मीटिंग करते रहते हैं किन्तु धरातल में कोई असर नहीं।
सवाल यह भी है कि यह सरकारी कर्मचारी कैसे नशे में धुत होकर गाड़ी में बैठा और उसकी हिम्मत इतनी कैसे हो गई कि वह नशे में गाड़ी चला ले, उसे कोई देखने वाला नहीं, चाहे वो सब को रौंदते हुए चले जाए, कोई रोकने वाला नहीं?
ये कैसी व्यवस्था है?, कैसा सिस्टम है??
इसका अर्थ साफ है की शराब पीने वालों को गाड़ी चलाने में कोई झिझक नहीं है, लोग शराब पीकर गाड़ी चला रहे हैं और किसी बात की चिंता नहीं है।और ऑफिस के समय पर किस प्रकार सरकारी कर्मचारी शराब पी रहा है,शराब पीकर गाड़ी चला रहा है, यह अलग बात।इसका मतलब शासन, प्रशासन व्यवस्था चरमराई सी है,तभी इस प्रकार के प्रकरण हो रहे हैं।अन्यथा दिन दहाड़े सरकारी कर्मचारी जो सरकारी अधिकारी के पद पर तैनात है, जो एक बहुत जिम्मेदारी का पद होता है, उसके द्वारा ऐसा कृत्य किया जा रहा तो समझा जा सकता है कि कितनी जिम्मेदारी का भाव लोगों के भीतर है, शराब पी लें और पीकर, खुलेआम सड़कों पर वाहन को रौंदते हुए लोगों के ऊपर चढ़ा दे।
ऐसे लोग जिंदा मौत की तरह है जो किसी की भी मौत ले सकते हैं। और अगर वो गाड़ी टकरा कर रुकती नहीं तो वो कितने को आगे मारता इसका कोई अंदाज़ा नहीं, साफ परिलक्षित होता है कि प्रशासन का बिल्कुल भी व्यवस्था,सम्मान यहाँ नहीं ओर जब शासन प्रशासन ही स्वयं लगातार पूरे उत्तराखंड में हर गली-गली, सड़क किनारे शराब के अड्डे खोलने को बेचैन हुआ पड़ा है, वहाँ ऐसा सड़क सड़क सुरक्षा की बात करना,अपराधों पर रोक लगाने की बात करना,बेमानी सा है।
एक व्यवस्था बनाने की जिम्मेदारी जो प्रशासन की है वो कहीं नहीं और किसी के बच्चे,परिवार खत्म हो गया इतनी आसानी से, जबकि उनकी कोई गलती नहीं। सवाल यह भी है कि अब उनकी मौत की जिम्मेदारी कौन लेगा? क्या एसपी ट्रैफिक को टर्मिनेट किया जाएगा? क्या प्रशासनिक अधिकारी,जिला अधिकारी पर कार्रवाई होगी या इसको भी ऐसे ही मुआवजा देकर सरकार अपने हाथ साफ कर लेगी जैसा होता है और जैसा व्यवस्था को लगता है की सरकारी फंड खर्च पर लोगों को मुआवजा सौंपकर सारे पाप धुल जाते हैं!
अर्थ यही है की उसको देखरेख करने वाला कोई नहीं है।और कोई चेकिंग की व्यवस्था पुलिस की नहीं है,प्रशासन की नहीं है। न प्रशासन को अपनी जिम्मेदारी का अहसास है ना उनकी कोई जवाबदेही तय करने वाला है क्योंकि दिनदहाड़े खुलेआम सरकारी कर्मचारि द्वारा ऐसा कृत किया जाना, अपने आप में कई सवाल पैदा करते हैं। और जिन बेगुनाह लोगो को बिना किसी कारण के मौत के घाट सुला दिया गया, उसकी जिम्मेदारी किस की? सिर्फ नशेड़ी चालक की जो होश में ही नहीं है, या उन लोगों की जो सड़क पर चल रहे थे, जो शाम को बेहतर स्वास्थ्य के लिए घूमने निकले थे।
और सबसे बड़ा दुर्भाग्य है कि प्रशासन के पास न तो ऐसे घटनाओं पर लगाम लगा पा रहा है, न तो लोगों के घूमने के लिए पार्क, खेल मैदान, न पैदल चलने लायक सुरक्षित मार्ग बना पा रहा है। कुल मिलाकर यह घटना राज्य की व्यवस्था की पूर्ण रूप से पोल खोलती है और शासन प्रशासन के हवाई दावों, उनकी अज्ञानता, संवेदनशीलता पर बड़ा प्रश्नचिन्ह लगाती है !