Sat. Mar 15th, 2025

उत्तरांखण्ड राज्य की सभी परीक्षाओं में अनारक्षित वर्ग के परीक्षार्थियों के साथ सरकारों द्वारा बड़ा छलावा, अप्रत्याशित आरक्षण पहुंचाये जाने से परीक्षार्थियों में भारी नाराजगी

STATE OF RESERVATION

उत्तराखंड राज्य की सभी परीक्षाओं में आरक्षित सीटों की कुल संख्या 79% पहुंच चुकी है। पिछले दिनों ही राज्य सरकार ने 10% राज्य आंदोलनकारी आरक्षण को भी मंजूरी दी है। इसके साथ ही कुछ समय पूर्व 4% खेल आरक्षण को भी मंजूरी मिली थी, साथ ही राज्य सरकार ने घोषणा कर दी है की 10 % आरक्षण अग्नि वीरों को दिया जाएगा।

उत्तराखंड राज्य में वर्टिकल रिजर्वेशन निम्न प्रकार से है –
SC – 19%
ST- 4%
OBC- 14%
EWS- 10%

इसके अतिरिक्त बची हुई 53 प्रतिशत सीटों में होरिजेंटल में –

30% महिला आरक्षण,
10%- राज्य आंदोलनकारी,
4%- खेल,

5%- पूर्व सैनिक
5%- अनाथ
2% – फ्रीडम फाइटर
5%- दिव्यांग


जिससे होरिजेंटल में आरक्षण 61% हो चुका है, इस प्रकार से कुल 100% में से 79% सीटें आरक्षित हो चुकी है, इसमें 10% होरिजेंटल में अग्निवीर आरक्षण और जोड़ा जाना है, जिसकी घोषणा पहले की जा चुकी है जो कुल मिलाकर आरक्षण को 85% तक कर देगा अर्थात 100 में से 85 सीटें आरक्षित वर्ग को ही मिलेंगी, उसके साथ ही वो बची हुई 15 फीसदी सीटों पर भी नौकरी ले सकते हैं।

कहाँ बिगड़ी बात, क्या है नाराजगी का कारण

राज्य के अनारक्षित वर्ग के अभ्यर्थियों के लिए एवं आरक्षित वर्ग में मेरिट में ऊपर आने वाले अभ्यर्थी के साथ ही अन्य राज्यों की अभ्यर्थियों के लिए 15 फ़ीसदी सीटें लगभग रह गई है, जिसमें बहुत बड़ा नुकसान राज्य के अनारक्षित वर्ग के अभ्यर्थियों को होना है जिनके पास कुछ भी फिक्स नहीं है, क्योंकि बची हुई 15% ओपन कैटेगरी की सीट हैं, जिसमें कोई भी प्रतिभागी प्रतिभाग कर सकता है और मेरिट में जो भी प्रतिभागी ऊपर आएगा, वह उन बची हुई 15% ओपन कैटेगरी की सीटों को ले जाएगा, चाहे वो आरक्षित वर्ग का ही अभ्यर्थी क्यों न हो।


अब इस दुविधा से अनारक्षित वर्ग की युवाओं में बड़ी हताशा देखी जा रही है, क्योंकि उनके लिए एक प्रकार से कुछ भी फिक्स नहीं है। जिससे कई सारे युवा हतोत्साहित होकर उत्तराखंड से बाहर जाने का मन बनाने की बात करने लगे हैं और अपने आने वाली पीढ़ी को उत्तराखंड की नौकरियों के प्रति सलाह न देने या तैयारी न करने की बात कर रहे हैं ।हालांकि अभ्यर्थियों के एक बड़े वर्ग द्वारा इन बढ़ते आरक्षण को कोर्ट में चैलेंज करने की बात कही जा रही है, तथा कहीं ना कहीं बड़े स्तर पर नौकरियों के आरक्षित कर दिए जाने से भारी रोष है। जबकि

उत्तराखण्ड मूलतः सामान्य वर्ग बहुलता का ही राज्य रहा है, लगभग 80% से भी ऊपर सामान्य वर्ग के ही रहे हैं और अन्य प्रदेशों की तरह भेदभाव भी यहाँ नहीं दिखता। साथ ही जो यहाँ की SC जातियां है, वे भी पूर्व से ही अपने कार्य क्षेत्र में बहुत आगे है, खासकर कला के क्षेत्र में, संस्कृति के क्षेत्र में एससी वर्ग में आने वाले लोगों का खास दबदबा है, उनके कार्य की विशेष पहचान है, निपुणता है। तथा एस0टी0 वर्ग में आने वाले जातियां मूलतः स्वयं को राजपूत वर्ग ही मानती है। इसके साथ ही घोषित ओबीसी वर्ग क्षेत्रीय आधार पर ही है।

देहरादून में रहकर पिछले 5 वर्ष से तैयारी कर रहे आशीष नेगी बताते हैं कि जनरल वर्ग में पुरुषों के लिए अब तैयारी करने लायक कुछ नहीं रह गया है और उनके उत्तराखंड सरकार में नौकरी करने एवं राज्य के लोगों की सेवा करने की गुंजाइश लगभग धूमिल हो चुकी है क्योंकि बची सीटों का प्रतिशत बहुत कम है और जिस प्रकार आरक्षण बड़ा-बड़ा कर 80% पहुंचा दिया गया है तो अनारक्षित वर्ग के लिए सारी उम्मीदें एक प्रकार से धूमिल हो चुकी हैंI इसलिए पढ़ाई करने वाले अभ्यर्थियों के लिए सब कुछ न्योछावर करके पढ़ाई करने पर भी कुछ मिलेगा ही, इसकी अब कोई गारंटी नहीं रह गई है। इसलिए वह उत्तराखंड सरकार में नौकरी हेतु प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी का मन छोड़ चुके हैं और चूंकि यहां प्राइवेट नौकरियों की भी बहुत कमी है, इसलिए अन्य प्रदेश में जाकर नौकरी ढूंढने की बात उन्होंने कही है।


साथ ही सरकारों को भी यह सोचना चाहिए कि बिना कैपेसिटी बिल्डिंग किये बिना, उचित शिक्षा, स्किल डेवलपमेंट और मूलभूत ज्ञान को बढ़ाएं सभी कुछ आरक्षित कर देने से राज्य सरकार का बड़ा नुकसान होगा । आरक्षण की सीमाओं को तोड़कर इसमें बेतहाशा वृद्धि से वस्तुत नुकसान राज्य का ही होगा क्योंकि ब्रेन ड्रेन की समस्या से वैसे ही भारत जूझ रहा है जिसमें पढ़ा लिखा प्रभुत्व मास बाहरी देशों का रुख कर रहा है और आरक्षण ने इस बात को केवल बढ़ावा ही दिया है, जबकि सरकारों द्वारा कैपेसिटी बिल्डिंग, समान शिक्षा, शिक्षा-स्वास्थ्य, बौद्धिक उच्चीकरण एवं वैज्ञानिक सोच विकसित करने हेतु कोई भी विशेष कार्य या ध्यान नहीं दिया गया जिससे अब हर वर्ग अपने-अपने हिसाब से सरकार पर आरक्षण देने का दबाव बना रहा है।

राज्य के मूल पहाड़ी वर्ग – कुमाऊंनी, गढ़वाली और जौनसारी समुदाय सभी पहाड़ी लोगों को फिफ्थ शेड्यूल (5TH SCHEDULE) में रखने की मांग शुरू कर दी है। अन्य पहाड़ी राज्यों की तरह पहाड़ियों को 5TH शेड्यूल में रख कर एस0टी0 आरक्षण की मांग कर रहे हैं, जो कहीं न कहीं राज्य में सामाजिक,आर्थिक और भौगोलिक संकट की ओर इशारा करता है।

जबकि विदेशों में देखे तो वहाँ का युवा टेक्नोलॉजी पर कार्य कर रहा है, दुनिया को, समाज को नए आयाम दे रहा और कुछ न कुछ नया करने, क्रिएटिव करने कि खोज में लगा हुआ है। और चुकीं अब सरकारी सेवाओं से अधिकतर कार्य सिर्फ खानापूर्ति तक सीमित रहता है और शायद ही सरकारी सेवाओं में बहुत बेहतरीन करने की गुंजाइश सरकारी नौकरियों में रहती है। किंतु युवाओं का सरकारी सेवाओं के प्रति ही सीमित हो जाना, राज्य के लिए खतरे की निशानी ही है कि अन्य अवसर युवाओं को नहीं मिल पा रहे, इसलिए वे न चाहकर भी सरकारी नौकरी के पीछे लगने को मजबूर है।

अब देखना होगा कि सरकारे इस दबाव को कैसे सहन करती हैं, क्योंकि आरक्षण भी 100% ही किया जा सकता है, और इसके आगे क्या करना है, इस पर भी राजनेताओं को अभी से विचार कर ही लेना चाहिए।

By devbhoomikelog.com

News and public affairs

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *