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जागेश्वर में 1000 देवदार के पेड़ काटे जाएंगे, पर्यावरणविदों ने जताई चिंता !

मास्टर प्लान के तहत आरतोला से जागेश्वर तक तीन किमी सड़क का चौड़ीकरण होना है। इसके लिए 100 हजार देवदार के पेड़ काटे जाने हैं। इसको लेकर पर्यावरणविदों ने चिंता जताई है।

उत्तराखंड के जागेश्वर में मास्टर प्लान के तहत हो रहे सड़क चौड़ीकरण के लिए करीब 1000 देवदार के पेड़ों को काटने की तैयारी से पर्यावरणविद चिंतित हैं। कार्यदायी संस्था लोक निर्माण विभाग ने चौड़ीकरण की जद में आ रहे पेड़ों का चिह्नीकरण करना शुरू कर दिया है। इस क्षेत्र के लोग भी इसके विरोध में उतर आए हैं। उनका कहना है कि आस्था से जुड़े दारुक वन में खड़े इन पेड़ों की वे पूजा करते हैं।

जागेश्वर धाम देवदार के जंगल के बीच स्थित है। इसे दारुक वन के नाम से भी पहचान मिली है। पौराणिक मान्यता के अनुसार यह दारुक वन भगवान शिव का निवास स्थान है, लेकिन धाम के विकास के लिए मास्टर प्लान को धरातल पर उतारने के लिए आरतोला से जागेश्वर तक तीन किमी सड़क का चौड़ीकरण होना है। टू-लेन सड़क बनाने के लिए इसकी जद में आ रहे 1000 से अधिक देवदार के पेड़ों का कटान होना है।

सोमवार को स्थानीय लोगों और व्यापारियों ने बैठक कर कहा कि यहां स्थित देवदार के पेड़ों को शिव-पार्वती, गणेश, पांडव वृक्ष के रूप में पूजा जाता है। ऐसे में इनका कटान नहीं होने दिया जाएगा। उन्होंने एसडीएम एनएस नगन्याल को इसके सम्बन्ध में ज्ञापन भी दिया। इसके विरोध में उतर आए उत्तराखंड लोक वाहिनी ने इसकी निंदा और विरोध किया है।

देवदारा यानी “देवताओं की लकड़ी”

उत्तराखंड के हिमालयी वृक्ष देवदार का पेड़ सिर्फ एक वृक्ष नहीं, बल्कि राज्य की सांस्कृतिक और पारिस्थितिकी पहचान का अभिन्न अंग है। इसकी ऊंचाई, सुगंधित सुगंध और मजबूत लकड़ी ने इसे सदियों से श्रद्धा और महत्व दिलाया है। उत्तराखंड की पारिस्थितिकी तंत्र की रीढ़ समझा जाने वाला देवदार का संबंध भगवान शिव से है। इसकी सदाबहार प्रकृति अमरता और आध्यात्मिक शक्ति का प्रतीक मानी जाती है। “देवदार” शब्द का शाब्दिक अर्थ ही “देवताओं की लकड़ी” है, जो इस विश्वास को दर्शाता है कि ये वन कभी देवताओं का निवास स्थान थे। देवदार की लकड़ी को पवित्र मानकर विभिन्न धार्मिक कार्यों में भी उपयोग किया जाता है।

By devbhoomikelog.com

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