चिटगाल और अवस्थी जैसे गांवों को जोड़ने वाली सड़कें अनियोजित विकास का स्पष्ट उदाहरण बन चुकी हैं। ग्रामीणों की मांग पर विधायक निधि से निर्मित ये सड़कें इतनी जल्दी क्षतिग्रस्त हो रही हैं कि इंजीनियर भी हैरान हैं। उनका मानना है कि इन सड़कों में तकनीकी मानकों, सर्वेक्षण, और दीर्घकालिक योजना का अभाव है। इससे विकासखंड डीडीहाट के दर्जनों गांवों में विधायक निधि से बनी सड़कें दिखावे का साधन बनकर रह गई हैं।
बिना डीपीआर (विस्तृत परियोजना रिपोर्ट), सर्वेक्षण, और तकनीकी अनुमति के बनाई जा रही इन सड़कों का भविष्य शुरू से ही संदिग्ध है। उदाहरण के तौर पर, चिटगाल गांव की चार किमी लंबी सड़क, जो 2021 में बनी थी, महज 60 दिन में नाले में तब्दील हो गई। इसी तरह, ओगला से अवस्थी गांव की सड़क भी कुछ महीनों में जर्जर हो गई। यह स्थिति केवल इन गांवों तक सीमित नहीं, बल्कि पूरे पहाड़ी क्षेत्र की चिंताजनक तस्वीर प्रस्तुत करती है। विधायक निधि से बनी ये सड़कें ग्रामीणों के लिए बोझ बन गई हैं।
इंजीनियरों की चिंता, विभाग की असहमति
विधायक निधि से बनी सड़कें इंजीनियरों के लिए सिरदर्द बन गई हैं। संबंधित विभाग इन सड़कों को अपनाने से इनकार कर रहे हैं, तर्क देते हुए कि अनियोजित कार्य को कैसे स्वीकार किया जा सकता है। उनका कहना है कि ये सड़कें तकनीकी रूप से मजबूत नहीं हैं और इनका निर्माण दीर्घकालिक योजना के बिना हुआ है। नियमों के अनुसार, बिना स्वीकृत योजना के बनी सड़कें विभागीय प्रक्रिया में शामिल नहीं हो सकतीं। जब तक विभाग इन्हें अपने अधीन नहीं लेता, डामरीकरण या मरम्मत का काम शुरू नहीं हो सकता। ऐसे में अस्थायी निर्माण का स्थायी समाधान कैसे हो, यह एक बड़ा सवाल है।
सपनों का धुंधला होना
चुनाव के नजदीक आते ही गांवों में जेसीबी की गूंज सुनाई देने लगती है और ग्रामीणों को विकास के सपने दिखाए जाते हैं। हालांकि, कागजी प्रगति के साथ इन क्षेत्रों में धूल, कीचड़, और टूटे सपने ही नजर आते हैं। जहां एक किमी सड़क की लागत लगभग 50 लाख रुपये आंकी जाती है, वहीं विधायक निधि से ये सड़कें कुछ लाख रुपये में बनाई जा रही हैं। सरकारी अधिकारी इन्हें कच्चा मोटर संपर्क मार्ग कहकर अपनी जिम्मेदारी से पल्ला झाड़ रहे हैं।
ग्रामीणों की दोहरी परेशानी
गांववासी बिना मुआवजे अपनी जमीन देकर सड़क निर्माण में सहयोग करते हैं, उम्मीद में कि इससे विकास आएगा। लेकिन जब ये सड़कें छह महीने में ही टूट जाती हैं, तो उनकी परेशानी बढ़ जाती है। न तो वे सड़क से लाभ उठा पाते हैं और न ही मुआवजा मिलता है। कई बार सड़क वाहनों के लिए बंद हो जाने पर गांव फिर से पैदल यात्रा के दौर में लौट जाते हैं, जिससे उनकी उम्मीदें भी धूमिल हो जाती हैं।
उद्धरण
“विधायक निधि से बनी सड़कों का हस्तांतरण संभव नहीं है, क्योंकि इनका निर्माण वैधानिक प्रक्रिया से परे है। ये सड़कें बिना डीपीआर और सर्वेक्षण के बनाई जाती हैं।”
- आशुतोष, कार्यकारी अभियंता, लोक निर्माण विभाग