देहरादून, 20 नवंबर 2025 – उत्तराखंड के पहाड़ी इलाकों में भालू का आतंक थमने का नाम नहीं ले रहा। आज फिर एक भयावह घटना ने ग्रामीणों के दिलों में खौफ पैदा कर दिया। पौड़ी गढ़वाल के बिरोखाल क्षेत्र के जीवई गांव में सुबह करीब 9 बजे एक हिमालयन ब्लैक बियर ने 42 वर्षीय लक्ष्मी देवी पर अचानक हमला बोल दिया। घास काटने गई लक्ष्मी का चेहरा बुरी तरह नोच लिया गया, जिसमें उनकी एक आंख भी चली गई। वे अपनी सास और भाभी के साथ करीब 200 मीटर अंदर जंगल में थीं, जब भालू ने झाड़ियों से घात लगाकर वार किया। 30 32 21
लक्ष्मी को ग्रामीणों ने खून से लथपथ हालत में जंगल से निकाला और नजदीकी अस्पताल पहुंचाया। उनकी हालत गंभीर बनी हुई है, और उन्हें देहरादून के एम्स रेफर कर दिया गया है। घटना के बाद गांव में सन्नाटा पसर गया। “हम लोग अब जंगल में घास लेने से डरते हैं। बच्चे गांव में ही सुरक्षित नहीं, भालू रातों में घरों के पास घूमते हैं,” जीवई के एक ग्रामीण देवेंद्र सिंह ने बताया। उन्होंने कहा कि चार महीने पहले ही बिरगां गांव में एक व्यक्ति पर इसी भालू ने हमला किया था, जिसके बाद से पशुओं पर भी कई हमले हो चुके हैं। 30
वन विभाग की लापरवाही: कोई त्वरित कार्रवाई नहीं, सिर्फ वादे!
यह हमला कोई पहली घटना नहीं है। 2025 में अब तक भालू हमलों में 7 लोग मारे जा चुके हैं और 71 घायल हुए हैं। 2000 से नवंबर 2025 तक कुल 71 मौतें और 2,009 चोटें दर्ज हो चुकी हैं। 28 36 लेकिन वन विभाग की प्रतिक्रिया? बस एक टीम भेजना और 50 हजार रुपये का अग्रिम मुआवजा! गढ़वाल वन प्रभाग के डीएफओ ने कहा कि भालू को पकड़ने की कोशिश की जा रही है, लेकिन ग्रामीणों का आरोप है कि विभाग की टीम घटनास्थल पर घंटों बाद पहुंची। “108 एम्बुलेंस भी समय पर नहीं आई। अफसर जिला मुख्यालय में बैठे रहते हैं, बीट स्तर पर सिर्फ 1-2 स्टाफ हैं जो पूरे इलाके संभालते हैं,” एक स्थानीय ने शिकायत की। 21
पिछले कुछ दिनों में ही चमोली के पोखरी ब्लॉक में रामेश्वरी देवी पर हमला, रुद्रप्रयाग के धरकुड़ी गांव में 7 महिलाओं पर भालू का सामूहिक हमला (जिसमें 55 वर्षीय किड़ी देवी गंभीर रूप से घायल), और उत्तरकाशी के मंगलपुर में मजदूरों पर अटैक जैसी घटनाएं सामने आ चुकी हैं। 2 9 25 ग्रामीणों का कहना है कि भालू अब सिर्फ जंगल तक सीमित नहीं, वे गांवों में घुसकर पशुओं को मार रहे हैं – जैसे ज्योतिरमठ के थाइग गांव में 3 गायों का शिकार। 35
भगवान भागने से ग्रामीण बच रहे, लेकिन अब गांव में ही खतरा!
पहले लोग जंगलों से भागकर गांवों में शरण लेते थे, लेकिन अब भालू गांवों तक पहुंच गए हैं। पर्यावरणविदों का कहना है कि जलवायु परिवर्तन इसका बड़ा कारण है। देरी से बर्फबारी और कम हिमपात से भालू शीतनिद्रा में नहीं जा पा रहे। ऊपरी जंगलों में भोजन की कमी से वे नीचे उतर आए हैं – मक्का, फल और कचरे की ओर आकर्षित होकर। “भालू तनावग्रस्त हो रहे हैं, आक्रामकता बढ़ रही है। लेकिन जंगल कटाई और मानवीय अतिक्रमण भी जिम्मेदार हैं,” पूर्व डिप्टी डायरेक्टर रंगनाथ पांडेय ने कहा। 29 1
पौड़ी जिले में पहली बार वन विभाग ने ‘शूट-ऐट-साइट’ के आदेश जारी किए हैं, लेकिन ग्रामीण सवाल उठा रहे हैं – “जिम्मेदारी कौन लेगा? विभाग की नाकामी से कितने और निर्दोष मरेंगे?” 36 5 स्थानीय मीडिया ‘देवभूमि डायलॉग’ ने भी वीडियो शेयर कर सरकार से तत्काल कदम उठाने की मांग की है। 8
ग्रामीणों की पुकार: अब और नहीं!
उत्तराखंड के गढ़वाल-कुमाऊं में मानव-वन्यजीव संघर्ष चरम पर है। बाघ, गुलदार के बाद अब भालू भी खूंखार साबित हो रहा। ग्रामीणों ने वन मंत्री से अपील की है – सेंसर लगे कैमरे, त्वरित रेस्क्यू टीम और मुआवजे में वृद्धि हो। “हम देवभूमि के लोग हैं, लेकिन यहां जानवरों का राज हो गया है। सरकार जागे, वरना गांव खाली हो जाएंगे,” एक प्रभावित परिवार ने कहा।
यह सिर्फ एक हमला नहीं, एक सिस्टम की नाकामी की कहानी है।
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