देहरादून, 14 नवंबर 2025 (ब्यूरो):
सुप्रीम कोर्ट ने उत्तराखंड हाईकोर्ट के एक फैसले पर कड़ी नाराजगी जाहिर की, जिसमें कोर्बेट टाइगर रिजर्व के पूर्व निदेशक राहुल के खिलाफ मुकदमा चलाने की राज्य सरकार की मंजूरी पर रोक लगा दी गई थी। यह मामला केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) द्वारा चल रही जांच से जुड़ा है, जिसमें रिजर्व के बफर जोन में कोर्बेट टाइगर सफारी प्रोजेक्ट के लिए अवैध पेड़ कटाई और अनधिकृत निर्माण का आरोप है। सुप्रीम कोर्ट की बेंच ने हाईकोर्ट के हस्तक्षेप पर हैरानी जताई और कहा कि जब मामला शीर्ष अदालत के पर्यवेक्षण में है, तो निचली अदालत को इसमें दखल नहीं देना चाहिए।
चीफ जस्टिस बी.आर. गवई, जस्टिस के. विनोद चंद्रन और जस्टिस एन.वी. अंजरिया की बेंच ने सुनवाई के दौरान टिप्पणी की, “हमें हाईकोर्ट के रवैये पर आश्चर्य है। हाईकोर्ट को कम से कम मंजूरी आदेश को पढ़ना चाहिए था, जिसमें हमारी पिछली सुनवाइयों का जिक्र है। हम बार-बार कहते रहे हैं कि हाईकोर्ट सुप्रीम कोर्ट से कमतर नहीं है, लेकिन जब मामला न्यायिक रूप से शीर्ष अदालत के पास लंबित है, तो हाईकोर्ट को इसकी उचित सम्मान देना चाहिए।” बेंच ने जोर देकर कहा कि यह हस्तक्षेप न्यायिक शिष्टाचार के खिलाफ है।
इस मामले की पृष्ठभूमि में, 2004 बैच के भारतीय वन सेवा अधिकारी राहुल पर कोर्बेट टाइगर रिजर्व के निदेशक रहते हुए लगभग 3,000 पेड़ों की अवैध कटाई और वन्यजीव संरक्षण अधिनियम तथा वन (संरक्षण) अधिनियम का उल्लंघन करने का आरोप है। सीबीआई जांच में आठ अधिकारियों के नाम सामने आए, जिनमें राहुल सबसे वरिष्ठ थे। मार्च 2024 में सुप्रीम कोर्ट ने विभागीय कार्रवाई का आदेश दिया था और उत्तराखंड हाईकोर्ट के 2023 के सीबीआई जांच के निर्देश को बरकरार रखा था।
9 सितंबर को जब अदालत को पता चला कि राज्य सरकार ने केवल राहुल के खिलाफ ही मुकदमे की मंजूरी देने से इनकार कर दिया था, तो कोर्ट ने राज्य पर “विशेष सुरक्षा” देने का आरोप लगाया। इसके बाद 16 सितंबर को राज्य ने मंजूरी दी, लेकिन 14 अक्टूबर को जस्टिस आशीष नैनथानी की सिंगल बेंच ने इसे रोक दिया। हाईकोर्ट ने कहा था कि राज्य की पहले मंजूरी न देने के फैसले की समीक्षा की क्षमता पर “महत्वपूर्ण सवाल” उठते हैं, इसलिए मुकदमे की वैधता तय होने तक रोक जरूरी है।
सुप्रीम कोर्ट ने राहुल को 11 नवंबर को व्यक्तिगत हाजिरी के लिए तलब किया था और उन पर अवमानना कार्यवाही की चेतावनी दी थी, क्योंकि उन्होंने शीर्ष अदालत में लंबित मामले के बावजूद हाईकोर्ट का रुख किया था। सुनवाई के दौरान वरिष्ठ अधिवक्ता आर. बसंत ने शुरू में राहुल का बचाव करने की कोशिश की, लेकिन लंच ब्रेक के बाद उन्होंने अदालत को बताया कि राहुल ने बिना शर्त माफी मांग ली है। बेंच ने नोट किया, “सुनवाई के दौरान राहुल के आचरण को जायज ठहराने की गंभीर कोशिश हुई, लेकिन लंच के बाद बेहतर समझ आ गई।”
अदालत ने स्पष्ट किया कि “राहुल का हाईकोर्ट जाना उचित नहीं था। यदि उन्हें हमारी किसी टिप्पणी या आदेश से नुकसान महसूस हुआ, तो वे यहीं से राहत मांग सकते थे।” हालांकि, राहुल के 20 वर्षों से अधिक के साफ-सुथरे सेवा रिकॉर्ड को देखते हुए बेंच ने अवमानना कार्यवाही से परहेज किया। आदेश में कहा गया, “कानून की महानता सजा देने में नहीं, बल्कि क्षमा करने में है। राहुल व्यक्तिगत रूप से अदालत के सामने हैं। गलत कानूनी सलाह के कारण उन्होंने यह गलत कदम उठाया।” अदालत ने माफी स्वीकार करते हुए हाईकोर्ट में लंबित कार्यवाही को वापस लेने और सुप्रीम कोर्ट में स्थानांतरित करने का निर्देश दिया।
अमीकस क्यूरी के रूप में सहायता कर रहे वरिष्ठ अधिवक्ता के. परमेश्वर ने हाईकोर्ट के आदेश की जानकारी दी। यह मामला वकील गौरव कुमार बंसल की याचिका से उपजा, जिन्होंने अवैध कटाई की शिकायत की थी। हिमांजलि एक्सप्रेस को मिली जानकारी के अनुसार, यह फैसला पर्यावरण संरक्षण के प्रति सुप्रीम कोर्ट की सख्ती को दर्शाता है, खासकर संरक्षित क्षेत्रों में। विशेषज्ञों का मानना है कि इससे अन्य मामलों में भी निचली अदालतों को सतर्क रहना पड़ेगा।
(रिपोर्ट – किरन मल्ल, देवभूमि के लोग रिपोर्टिंग)
