देहरादून स्थित भारतीय सैन्य अकादमी (आईएमए) में आयोजित 157वीं पासिंग आउट परेड में देश को 491 युवा सैन्य अधिकारी मिले। इन्हीं नामों में एक नाम ऐसा भी रहा, जिसने पूरे समारोह को भावुक और प्रेरणादायक बना दिया। हरियाणा के अलीपुरा गांव के हरदीप गिल—एक मिड-डे मील वर्कर का बेटा—अब भारतीय सेना में लेफ्टिनेंट बन चुके हैं।
हरदीप की कहानी सिर्फ एक चयन की नहीं, बल्कि संघर्ष, धैर्य और मां के अथक परिश्रम की मिसाल है। उनके पिता का निधन करीब 20 वर्ष पहले हो गया था। उस समय हरदीप महज दो साल के थे। परिवार की सारी जिम्मेदारी उनकी मां संतरों देवी के कंधों पर आ गई। तीन बेटियों और एक छोटे बेटे के साथ जीवन आसान नहीं था, लेकिन उन्होंने हालात के आगे घुटने नहीं टेके।
मां बनी ढाल, बेटे का सपना बना लक्ष्य
संतरों देवी ने सरकारी स्कूल में मिड-डे मील वर्कर के रूप में मामूली वेतन पर काम किया। स्कूल की छुट्टी के बाद वह खेतों में मजदूरी करती थीं। कठिन परिस्थितियों, सीमित संसाधनों और सामाजिक दबावों के बावजूद उन्होंने अपने बेटे की पढ़ाई और सपनों से कभी समझौता नहीं किया।
हरदीप ने गांव के सरकारी स्कूल से शिक्षा हासिल की और बाद में इग्नू से स्नातक की पढ़ाई पूरी की। पढ़ाई के साथ-साथ उन्होंने भी खेतों में काम किया, ताकि परिवार का सहारा बन सकें। आईएमए में चयन होने तक संघर्ष उनका रोजमर्रा का साथी बना रहा।
मेहनत रंग लाई, देश सेवा का सपना हुआ साकार
शनिवार को जब हरदीप गिल को भारतीय सेना में कमीशन मिला, तो यह सिर्फ उनकी नहीं, बल्कि उनकी मां की भी जीत थी। लेफ्टिनेंट हरदीप अपनी सफलता का पूरा श्रेय मां को देते हैं। उनका कहना है कि मां की मेहनत, त्याग और हिम्मत ने उन्हें हर मुश्किल से लड़ना सिखाया।
हरदीप कहते हैं,
“मां ने कभी हालात को बहाना नहीं बनने दिया। हर असफलता से सीख लेकर आगे बढ़ना उन्हीं से सीखा।”
लाखों युवाओं के लिए प्रेरणा
लेफ्टिनेंट हरदीप गिल की कहानी उन लाखों युवाओं के लिए प्रेरणा है, जो संसाधनों की कमी के कारण अपने सपनों को अधूरा मान लेते हैं। यह कहानी बताती है कि मेहनत, लगन और आत्मविश्वास के सामने परिस्थितियां हार जाती हैं।
