20 नवंबर 2025 ( Devbhoomikelog ब्यूरो)**: दिल्ली-एनसीआर में सर्दी की दस्तक के साथ ही प्रदूषण का कोहरा फिर से घना हो गया है। वायु गुणवत्ता सूचकांक (AQI) ‘गंभीर’ श्रेणी में पहुंच गया है, जो स्वास्थ्य के लिए घातक साबित हो रहा। केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (CPCB) के आंकड़ों के अनुसार, दिल्ली का औसत AQI 280 से 624 तक पहुंचा, जिसमें पीएम2.5 और पीएम10 के स्तर विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) की सीमा से कई गुना अधिक हैं। यह संकट न केवल दिल्ली तक सीमित है, बल्कि उत्तराखंड जैसे पहाड़ी राज्यों पर भी इसका बुरा असर पड़ रहा है। एम्स दिल्ली के डॉक्टरों ने इसे ‘चिकित्सा आपातकाल’ करार देते हुए लोगों को सतर्क रहने की सलाह दी है। आइए जानते हैं विस्तार से।
दिल्ली में प्रदूषण की भयावह स्थिति और AQI संकेतक
दिल्ली का वायु प्रदूषण अब एक मौसमी समस्या से कहीं अधिक हो चुका है। नवंबर 2025 में AQI का औसत 360 तक पहुंच गया, जो ‘खतरनाक’ स्तर का संकेत देता है। 18 नवंबर को सुबह 7 बजे AQI 617 तक उछला, जबकि शाम 4 बजे यह 212 पर आया। 19 नवंबर को सुबह 7:30 बजे पीएम2.5 का स्तर 384 माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर था, जो WHO की 24 घंटे की सुरक्षित सीमा (15 माइक्रोग्राम) से 26 गुना अधिक है। पीएम10 का स्तर 257 माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर रहा, जो 45 माइक्रोग्राम की सीमा से कहीं ऊपर है।
कई इलाकों में स्थिति और भी खराब रही। बवाना में AQI 427, जाहंगीरपुरी 407, रोहिणी 404 और वजीरपुर 401 दर्ज किया गया। नोएडा और गुरुग्राम जैसे एनसीआर क्षेत्रों में भी AQI 350 से ऊपर रहा। विशेषज्ञों के अनुसार, पराली जलाना (25-30% योगदान), वाहनों से उत्सर्जन, औद्योगिक धुआं, निर्माण धूल और कम हवा की गति ने प्रदूषण को फंसाकर रखा है। ग्रेडेड रिस्पॉन्स एक्शन प्लान (GRAP) के तहत स्टेज III लागू है, जिसमें निर्माण कार्य बंद हैं, लेकिन राहत न के बराबर है।
उत्तराखंड पर दिल्ली प्रदूषण का असर
दिल्ली का जहरीला कोहरा उत्तराखंड तक पहुंच रहा है, खासकर देहरादून और हरिद्वार जैसे मैदानी इलाकों में। 19 नवंबर को देहरादून का AQI 149 (खराब) रहा, जिसमें पीएम2.5 67 माइक्रोग्राम और पीएम10 81 माइक्रोग्राम दर्ज किया गया। 18 नवंबर को यह 108 से 168 के बीच रहा। दीवाली के बाद अक्टूबर में देहरादून का AQI 261 (गंभीर) तक पहुंचा था, जो दिल्ली के 351 से बेहतर था, लेकिन नवंबर में दिल्ली के प्रदूषण का असर दिखने लगा है।
नागरिकों का कहना है कि दिल्ली-देहरादून एक्सप्रेसवे बनने से वाहनों का बढ़ता ट्रैफिक और निर्माण कार्य प्रदूषण को और बढ़ाएंगे। पर्यावरण कार्यकर्ता विजया रजवार ने कहा, “दिल्ली जैसी हवा उत्तराखंड में क्यों? पेड़ कटाई और शहरीकरण से AQI बिगड़ रहा है।” हालांकि, उत्तराखंड प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने ड्रोन से पानी छिड़काव और जागरूकता अभियान से कुछ राहत का दावा किया है, लेकिन विशेषज्ञों का मानना है कि दिल्ली से आने वाली हवा का प्रवाह उत्तराखंड के पर्यटन और स्वास्थ्य को प्रभावित कर रहा है।
AIIMS दिल्ली के डॉक्टरों की सलाह: प्रदूषण से बचाव के उपाय
एम्स दिल्ली के फेफड़ों के विशेषज्ञ प्रोफेसर अनंत मोहन ने चेतावनी दी है कि प्रदूषण अब केवल फेफड़ों को ही नहीं, बल्कि हृदय, मस्तिष्क, गर्भावस्था और बच्चों के विकास को नुकसान पहुंचा रहा है। उन्होंने कहा, “यह जन्म से मृत्यु तक का खतरा है। अस्पतालों में श्वसन रोगियों में 15-20% की वृद्धि हो रही है, कई को वेंटिलेटर पर रखना पड़ रहा है।” पूर्व एम्स निदेशक डॉ. रणदीप गुलेरिया ने जोड़ा कि प्रदूषण हृदय रोग, अस्थमा, मानसिक स्वास्थ्य और स्ट्रोक का जोखिम बढ़ाता है।
डॉक्टरों की प्रमुख सलाहें:
- घर से बाहर न निकलें: सुबह जल्दी या शाम को बाहर जाना टालें। यदि जरूरी हो तो N95 मास्क पहनें।
- एयर प्यूरीफायर का उपयोग: घर में एयर प्यूरीफायर लगाएं, खासकर बच्चों और बुजुर्गों के कमरे में। पौधे जैसे एरिका पाम, रबर प्लांट और पीस लिली लगाएं।
- विशेष सतर्कता: बच्चे, गर्भवती महिलाएं, बुजुर्ग और हृदय/श्वसन रोगी घर पर रहें। लक्षण जैसे सांस फूलना, खांसी या सीने में दर्द होने पर तुरंत डॉक्टर से संपर्क करें।
- दीर्घकालिक उपाय: डॉक्टरों ने सरकार से साल भर की नीतियां मांगीं, जैसे उत्सर्जन नियंत्रण और पराली प्रबंधन। डॉ. मोहन ने कहा, “मास्क और प्यूरीफायर अस्थायी हैं, स्थायी समाधान जरूरी।”
उत्तराखंड में रहते हुए भी दिल्ली के संकट से सतर्क रहें। स्थानीय स्तर पर पेड़ लगाएं, वाहन कम इस्तेमाल करें। अधिक जानकारी के लिए CPCB या AIIMS की वेबसाइट देखें।
नोट: (सभी आंकड़े आधिकारिक स्रोतों पर आधारित; वास्तविक सत्यापन करें।)
