देहरादून, उत्तराखंड – 3 अक्टूबर 2025
देवभूमि उत्तराखंड की राजधानी देहरादून में प्राचीन गढ़वाल राजवंश की कुलदेवी श्री नंदा राज राजेश्वरी के सम्मान में एक भव्य रैली का आयोजन किया गया। राजपुर रोड से प्रारंभ होकर घंटाघर तक पहुंची इस रैली ने शहर की सड़कों को भक्ति और सांस्कृतिक उत्साह से सराबोर कर दिया। हजारों श्रद्धालुओं, राजवंश के वंशजों और स्थानीय निवासियों की भागीदारी के साथ यह आयोजन नंदा देवी राजजात यात्रा 2026 की पूर्वसंध्या पर एक प्रतीकात्मक विदाई का संदेश देता नजर आया।
गढ़वाल राजवंश, जो सातवीं शताब्दी से देवभूमि पर शासन करता रहा, श्री नंदा को अपनी इष्टदेवी के रूप में पूजता है। नंदा देवी को राजराजेश्वरी के नाम से जाना जाता है, जो माता पार्वती का ही एक रूप मानी जाती हैं। यह रैली उसी प्राचीन परंपरा का हिस्सा थी, जिसमें देवी के मायके (कर्णप्रयाग के नौटी) से ससुराल (कैलाश) की प्रतीकात्मक विदाई का उत्सव मनाया जाता है। लोक कथाओं के अनुसार, देवी नंदा 12 वर्ष मायके रुकने के बाद विशेष विधि-विधान से विदा की जाती हैं, और यह रैली उसी भावना को जीवंत करती है। यह परंपरा सातवीं शताब्दी में राजा कनकपाल द्वारा शुरू की गई थी, जो गढ़वाल राजवंश की स्थापना का श्रेय प्राप्त करते हैं। उल्लेखनीय है कि गढ़वाल के कुनवारों ने प्रारंभ में ‘पाल’ उपाधि का उपयोग किया था, लेकिन 15वीं शताब्दी में इसे ‘शाह’ में परिवर्तित कर दिया।
सुबह 8 बजे राजपुर रोड पर एकत्र हुए श्रद्धालु पारंपरिक गढ़वाली वेशभूषा में सजे थे। रैली का नेतृत्व गढ़वाल राजवंश के प्रमुख वंशजों ने किया, जिनमें कुनवार कीर्ति प्रताप सिंह, कुनवार भवानी प्रताप, कुनवार निलय प्रताप, डॉ. कृष्णानंद नौटियाल, माधव नौटियाल आदि सम्मिलित थे। पूर्व राजपरिवार के प्रतिनिधि और स्थानीय सांस्कृतिक संगठनों के पदाधिकारियों की मौजूदगी ने आयोजन को और गरिमामय बना दिया। ढोल-दमाऊ की थाप, झांझ-मंजीरों की सरिता और ‘जय मां नंदा राज राजेश्वरी’ के जयकारों के बीच रैली आगे बढ़ी। चार सींग वाले भेड़ (चौशींग्या खाड़ू) की प्रतीकात्मक मूर्ति को सजाकर आगे रखा गया, जो यात्रा का प्रमुख प्रतीक है। रास्ते में फूलों की वर्षा, रंग-बिरंगे ध्वज और देवी नंदा की स्वर्ण प्रतिमा ने माहौल को दिव्य बना दिया।

घंटाघर पहुंचने पर एक विशेष पूजन-अर्चना का आयोजन किया गया, जहां वैदिक मंत्रोच्चार के बीच देवी को फूल, चंदन, धूप-दीप और प्रसाद अर्पित किए गए। कुनवार कीर्ति प्रताप सिंह ने पूजन के बाद कहा, “यह रैली न केवल धार्मिक अनुष्ठान है, बल्कि गढ़वाल-कुमाऊं की सांस्कृतिक एकता का प्रतीक भी है। 2026 की मुख्य राजजात यात्रा से पहले यह आयोजन युवा पीढ़ी को हमारी जड़ों से जोड़ने का माध्यम बनेगा।” डॉ. कृष्णानंद नौटियाल ने भी राजवंश की ऐतिहासिक परंपराओं पर प्रकाश डालते हुए युवाओं को विरासत संरक्षण के लिए प्रेरित किया। स्थानीय प्रशासन ने ट्रैफिक प्रबंधन और सुरक्षा के पुख्ता इंतजाम किए, जिससे कोई असुविधा न हो।
यह आयोजन एशिया की सबसे लंबी पैदल यात्रा—नंदा देवी राजजात—की सांस्कृतिक झलक था, जो हर 12 वर्ष में 280 किलोमीटर की दूरी तय करती है। गढ़वाल राजवंश की यह परंपरा आज भी जीवित है, जो पर्यावरण संरक्षण, लोक नृत्य और सामुदायिक एकता को बढ़ावा देती है। रैली के समापन पर सभी ने 2026 की यात्रा के सफल आयोजन की कामना की।