देहरादून, 23 नवंबर 2025: उत्तराखंड के पेयजल निगम में वित्तीय अनियमितताओं का काला चिट्ठा खुल गया है। नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (CAG) की ताजा रिपोर्ट ने खुलासा किया है कि 2016 से 2025 तक निगम के विकास और निर्माण कार्यों में कुल 2660.27 करोड़ रुपये की गंभीर वित्तीय गड़बड़ियां हुई हैं। यह रिपोर्ट राज्य के सार्वजनिक धन की लूट का जीता-जागता प्रमाण है, जो अधिकारियों और ठेकेदारों के गठजोड़ से संभव हुई। RTI कार्यकर्ता विकेश सिंह नेगी ने इस रिपोर्ट को आधार बनाकर मुख्यमंत्री को शिकायत भेजी है, लेकिन रिपोर्ट अभी तक विधानसभा में पेश नहीं की गई है, न ही किसी स्तर पर चर्चा हुई है। सवाल उठता है- आखिर कौन जिम्मेदार है इस लूट के लिए, और क्यों इन मुद्दों को पिछले 10 सालों से छिपाया गया? यह जनता के अधिकारों पर सीधा प्रहार है।
प्रमुख लापरवाहियां जो CAG ने फ्लैग कीं
CAG ने पेयजल निगम के कार्यों में कई गंभीर चूक उजागर की हैं, जो सीधे जनता के पानी और विकास के अधिकार को प्रभावित करती हैं:
- ठेकेदारों द्वारा GST जमा न करना: निर्माण कार्यों में जीएसटी कटौती के बावजूद ठेकेदारों ने सरकारी खजाने में राशि जमा नहीं की, जिससे करोड़ों का नुकसान।
- बैंक गारंटी के बिना भुगतान: कार्यों की प्रगति सत्यापन के बावजूद बिना बैंक गारंटी के भुगतान जारी करना, जो जोखिम भरा साबित हुआ।
- अधूरे कार्यों पर धनराशि जारी: कई प्रोजेक्ट अधूरे रहने के बावजूद पूरा भुगतान कर दिया गया, जिससे फंड का दुरुपयोग।
- निम्न गुणवत्ता का निर्माण: CAG ने निर्माण की खराब क्वालिटी पर सख्त टिप्पणी की है, जहां कई पेयजल योजनाएं टिकाऊ नहीं साबित हुईं।
ये लापरवाहियां वर्षवार बंटी हुई हैं: 2016-17 में 92.41 करोड़, 2017-18 व 2018-19 में कोई ऑडिट ही नहीं, 2019-20 में 656.05 करोड़, कोविड काल के 2020-21 में सबसे ज्यादा 829.90 करोड़, 2021-22 में 43.48 करोड़, 2022-23 में 96.99 करोड़, 2023-24 में 803 करोड़, और 2024-25 (मई तक) में 38.41 करोड़।
लापरवाहियों के पीछे छिपे कारण: साजिश या लापरवाही?
रिपोर्ट के अनुसार, ये अनियमितताएं महज चूक नहीं, बल्कि अधिकारियों और ठेकेदारों के सांठ-गांठ का नतीजा हैं। जानबूझकर की गई यह आर्थिक साजिश राज्य को आर्थिक नुकसान पहुंचाने वाली लगती है। कोविड महामारी के दौरान भुगतान बढ़ना खास तौर पर शर्मनाक है, जब संसाधन सीमित थे। ऑडिट की कमी ने इन गड़बड़ियों को पनपने दिया, क्योंकि 2017-18 और 2018-19 में कोई जांच ही नहीं हुई। निगम का आंतरिक नियंत्रण तंत्र कमजोर होने से जवाबदेही का अभाव रहा, जो भ्रष्टाचार को बढ़ावा देता है।
कौन है जिम्मेदार? अधिकारियों की मिलीभगत ने की लूट
यह लूट किसी एक व्यक्ति की नहीं, बल्कि निगम के उच्च अधिकारियों और ठेकेदारों की सांठ-गांठ का नतीजा है। RTI कार्यकर्ता विकेश सिंह नेगी ने स्पष्ट आरोप लगाया है कि विभाग के अधिकारी ही इन वित्तीय अनियमितताओं के मुख्य जिम्मेदार हैं। निगम के कार्यकारी अभियंता (Executive Engineers), अधीक्षण अभियंता (Superintending Engineers) और मुख्य अभियंता (Chief Engineers) स्तर पर भुगतान स्वीकृति, GST वसूली और कार्य निगरानी की जिम्मेदारी इन्हीं अधिकारियों की थी। उदाहरण के लिए, हाल ही में भ्रष्टाचार के मामले में सुजीत कुमार विकास (Sujeet Kumar Vikas), अधीक्षण अभियंता, हल्द्वानी को निलंबित किया गया, जब एक ठेकेदार से 10 लाख रुपये रिश्वत लेने का खुलासा हुआ। इसी तरह, 2025 में चार कार्यकारी अभियंताओं (जैसे सुमित आनंद, मुनिश करारा, सरिता गुप्ता) को आरक्षण का गलत फायदा उठाने के लिए बर्खास्त किया गया। निगम के बोर्ड ऑफ डायरेक्टर्स, जिसमें पेयजल एवं स्वच्छता विभाग के सचिव चेयरमैन हैं, और मैनेजिंग डायरेक्टर की भूमिका भी सवालों के घेरे में है। ठेकेदारों ने अधिकारियों के संरक्षण में फर्जी बिल पास कराए, जबकि अधिकारी बिना जांच के फंड जारी करते रहे। यह मिलीभगत सीधे जनधन की चोरी है, और दोषियों पर आपराधिक मुकदमा चलना चाहिए।
जनधन पर बड़ा आघात: 2660 करोड़ की लूट का असर
यह वित्तीय अनियमितता सीधे जनता के पैसे की बर्बादी है। उत्तराखंड जैसे पहाड़ी राज्य में, जहां पेयजल योजनाएं जीवनरेखा हैं, यह लूट विकास को ठप कर रही है। अधूरे प्रोजेक्ट और खराब निर्माण से ग्रामीण क्षेत्रों में पानी की कमी बनी हुई है, जबकि करोड़ों रुपये ठेकेदारों की जेब में चले गए। राज्य के बजट पर बोझ बढ़ा है, और भविष्य की योजनाओं के लिए फंड की कमी हो गई है। कुल मिलाकर, यह सार्वजनिक धन का अपव्यय है, जो गरीबों और जरूरतमंदों को सबसे ज्यादा चोट पहुंचाता है।
क्यों छिपाई गई यह मुसीबत और नुकसान पिछले 10 सालों से? साजिश का पर्दाफाश
सबसे बड़ा सवाल- आखिर क्यों इन अनियमितताओं को 2016 से अब तक (करीब 10 साल) छिपाया गया? RTI कार्यकर्ता नेगी के अनुसार, निगम ने कई वर्षों तक अपने खातों का ऑडिट ही नहीं कराया, जिससे गड़बड़ियां पनपती रहीं। 2017-18 और 2018-19 में CAG ऑडिट की कमी इसका सबूत है। रिपोर्ट को विधानसभा में पेश न करने की देरी राजनीतिक दबाव का नतीजा लगती है- सरकारें CAG रिपोर्ट्स को ‘कार्यपालिका की वित्तीय स्वायत्तता’ का हवाला देकर टालती रहीं, जैसा कि अन्य राज्यों (जैसे दिल्ली) में देखा गया। यह छिपाव भ्रष्टाचारियों को बचाने की साजिश है, जहां अधिकारी और नेता मिलकर जांच को दबाते हैं। RTI के जरिए ही यह खुलासा हुआ, वरना जनता अंधेरे में ही रह जाती। CAG की स्वतंत्रता पर सवाल उठते रहे हैं, लेकिन यहां तो आंतरिक ऑडिट सिस्टम का पूरा फेलियर है। अगर समय पर जांच होती, तो यह लूट रुक सकती थी।
समय पर ऑडिट सुनिश्चित करने के उपाय: सुधार की राह
CAG रिपोर्ट ने न केवल समस्याएं उजागर की हैं, बल्कि सुधार के रास्ते भी सुझाए हैं। इन अनियमितताओं को रोकने और समय पर ऑडिट सुनिश्चित करने के लिए निम्न कदम उठाए जा सकते हैं:
- उच्च स्तरीय जांच: एसआईटी या सीबीआई से तत्काल जांच करवाएं, ताकि दोषी अधिकारियों (जैसे अधीक्षण अभियंताओं) और ठेकेदारों पर आपराधिक कार्रवाई हो सके।
- नियमित ऑडिट प्रक्रिया: निगम में वार्षिक ऑडिट को अनिवार्य बनाएं, डिजिटल ट्रैकिंग सिस्टम से कार्यों की रीयल-टाइम मॉनिटरिंग करें। 2017-18 जैसी ऑडिट-रहित अवधि दोबारा न हो।
- जवाबदेही मजबूत करें: बैंक गारंटी और जीएसटी जमा को सख्ती से लागू करें। निर्माण गुणवत्ता के लिए थर्ड-पार्टी ऑडिट अनिवार्य हो।
- विधानसभा में चर्चा: रिपोर्ट को तुरंत विधानसभा में पेश कर बहस हो, ताकि पारदर्शिता आए और जनता को जानकारी मिले। छिपाव रोकने के लिए समयबद्ध पेशी का कानून बने।
- ई-गवर्नेंस को बढ़ावा: ऑनलाइन पोर्टल से भुगतान और प्रगति रिपोर्टिंग करें, जिससे सांठ-गांठ की गुंजाइश कम हो।
ये उपाय न केवल वर्तमान लापरवाहियों को सुधारेंगे, बल्कि भविष्य में सार्वजनिक धन की रक्षा सुनिश्चित करेंगे। सरकार से अपेक्षा है कि वह इस रिपोर्ट पर त्वरित कार्रवाई करे, वरना जनता का विश्वास और टूटेगा।
देवभूमि के लोग* इस मुद्दे पर नजर रखे हुए हैं। क्या आपकी नजर में कोई अन्य अनियमितता है? कमेंट में अथवा devbhoomikelog001@gmail.com पर बताएं!
(स्रोत: CAG रिपोर्ट,Adv. Vikesh Negi and Internet sources)*
