देहरादून में बूढ़ी दिवाली यानी इगास पर्व इस बार बेहद धूमधाम से मनाया गया। पूरे शहर में पारंपरिक लोकसंस्कृति की झलक देखने को मिली। विभिन्न सामाजिक और सांस्कृतिक संस्थाओं ने भव्य कार्यक्रम आयोजित किए, जिनमें लोगों ने लोकनृत्य, लोकगीतों और पहाड़ी व्यंजनों का आनंद लिया।
धाद संस्था ने इस बार का इगास पर्व खास अंदाज़ में मनाया। संस्था ने आपदा प्रभावित बच्चों के साथ पर्व की खुशियाँ साझा कीं और उनकी शिक्षा के लिए सहयोग का संकल्प लिया। वहीं ब्रह्मपुरी में इगास पर्व समिति द्वारा आयोजित कार्यक्रम में लोकगायक निधि राणा और राम कौशल ने अपने गीतों से श्रोताओं को मंत्रमुग्ध कर दिया।
राज्य आंदोलनकारियों और उत्कृष्ट जन कल्याण सेवा समिति ने भी पारंपरिक उत्साह के साथ इगास मनाया। पूरे शहर में ढोल-दमाऊं की थाप, भैलो की रोशनी और झंगोरे की खुशबू से माहौल उल्लासमय हो उठा।
कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी को मनाया जाने वाला यह पर्व उत्तराखंड की लोकसंस्कृति का प्रतीक है। लोगों ने दिनभर पारंपरिक पकवान — उड़द की दाल की पकोड़ी और स्वाले — बनाए। शाम होते ही घरों को दीयों से सजाया गया, गोवंश की पूजा की गई और एक-दूसरे को “भैलो रे भैलो, अंध्यरो भजैकि उज्यलो देलो” गीत के साथ शुभकामनाएँ दी गईं।
युवा पीढ़ी को अपनी जड़ों से जोड़ने के लिए विभिन्न सांस्कृतिक संगठनों ने लोकगीतों और पारंपरिक नृत्यों की शानदार प्रस्तुतियाँ दीं। लोग भैलो खेलते हुए देर रात तक पर्व का आनंद लेते रहे। इगास पर्व ने एक बार फिर यह संदेश दिया कि उत्तराखंड की संस्कृति आज भी उतनी ही जीवंत और उल्लासमय है, जितनी सदियों पहले थी।
