Sat. Aug 2nd, 2025

हरेला हमारी संस्कृति, प्रकृति और आत्मिक जागरूकता का दर्पण: मुख्यमंत्री

मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने हरेला पर्व के अवसर पर बुधवार को ‘हरेला पर्व मनाएं, माँ धरती का ऋण चुकाएं’ थीम के तहत आयोजित पौधरोपण कार्यक्रम में हिस्सा लिया। इस दौरान उन्होंने एक रुद्राक्ष का पौधा रोपा और पौधों की नियमित देखभाल पर बल दिया, ताकि वे बड़े होकर मजबूत वृक्ष बन सकें।

उन्होंने कहा कि हरेला केवल एक पर्व नहीं, बल्कि उत्तराखंड की संस्कृति, प्रकृति और चेतना के साथ गहरे जुड़ाव का प्रतीक है। “यह हमें पर्यावरण के प्रति हमारी जिम्मेदारियों की याद दिलाता है,” सीएम ने जोड़ा। उन्होंने हरेला के दौरान लगभग पांच लाख पौधे रोपने का लक्ष्य घोषित किया, जिसमें 50 प्रतिशत फलदार वृक्ष होंगे, और यह कार्य वन विभाग के प्रत्येक प्रभाग में केंद्रित होगा।

उत्तराखंड के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने कहा कि सरकार इस पर्यावरण अभियान में जन भागीदारी को बढ़ावा दे रही है, जिसमें स्वयंसेवी संगठन, छात्र, महिला समूह और स्थानीय पंचायतें शामिल हैं।

उन्होंने उत्तराखंड की प्राकृतिक सुंदरता और जैव विविधता की समृद्धि पर प्रकाश डाला, यह रेखांकित करते हुए कि इसे संरक्षित करना हमारा नैतिक कर्तव्य है। धामी ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में प्रचारित पहलों जैसे ‘पंचामृत संकल्प’, ‘नेट जीरो एमिशन’, ‘लाइफस्टाइल फॉर एनवायरनमेंट’ और ‘एक पेड़ माँ के नाम’ का उल्लेख किया। उन्होंने बताया कि इस वर्ष देशभर में 108 करोड़ पौधे लगाने का राष्ट्रीय लक्ष्य है।

मुख्यमंत्री ने यह भी बताया कि राज्य में स्प्रिंग्स एंड रिवर रिजनरेशन अथॉरिटी (SARRA) ने अब तक 6,500 से अधिक जल स्रोतों का संरक्षण किया है और 31.2 लाख क्यूबिक मीटर वर्षा जल एकत्र किया है। इसके अतिरिक्त, उत्तराखंड में एकल-उपयोग प्लास्टिक पर पूर्ण प्रतिबंध लागू किया गया है और वाहनों में डस्टबिन अनिवार्य किए गए हैं।कृषि मंत्री गणेश जोशी ने कहा कि उत्तराखंड में श्रावण मास में हरेला पूजा के बाद पेड़ लगाने की परंपरा सदियों से चली आ रही है। उन्होंने कहा, “यह हमारी सांस्कृतिक चेतना और पर्यावरणीय जिम्मेदारी को दर्शाता है, जिसे यहाँ पवित्र कर्तव्य माना जाता है।”

वन मंत्री सुबोध उनियाल ने बताया कि हरेला लोक पर्व राज्य भर में 2,389 स्थानों पर मनाया जा रहा है। उन्होंने कहा कि पिछले तीन वर्षों में हरेला पर्व के दौरान लगाए गए पौधों की जीवित रहने की दर 80 प्रतिशत से अधिक रही है। हालांकि, उन्होंने जल स्तर में कमी पर चिंता व्यक्त की और पौधरोपण तथा जल धाराओं के संरक्षण में निरंतर प्रयासों की आवश्यकता पर बल दिया।

By devbhoomikelog.com

News and public affairs

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *