Tue. Dec 2nd, 2025

उत्तराखंड में भालू का आतंक: मानव-वन्यजीव संघर्ष की बढ़ती चुनौती, जलवायु परिवर्तन ने बदला भालुओं का व्यवहार—25 वर्षों में 2,000 से अधिक हमले, 71 मौतें

देहरादून, 24 नवंबर 2025 (देवभूमि के लोग विशेष संवाददाता): देवभूमि उत्तराखंड की शांत वादियों में आज भालू का साया मंडरा रहा है। हिमालयी काले भालू (हिमालयन ब्लैक बियर), जो कभी फल-फूलों पर निर्भर शांतिप्रिय जीव माने जाते थे, अब आक्रामक शिकारी बन चुके हैं। पिछले तीन महीनों में ही राज्य में 71 भालू हमलों की घटनाएं दर्ज की गई हैं, जिनमें 7 लोगों की मौत हो चुकी है। पौड़ी, चमोली, रुद्रप्रयाग, पिथौरागढ़ और उत्तरकाशी जैसे जिलों में ग्रामीण दहशत के साये में जी रहे हैं। महिलाएं और बच्चे जंगलों में घास-लकड़ी लेने से कतरा रहे हैं, जबकि पशुधन पर भालुओं का हमला आम हो गया है। वन विभाग ने पहली बार ‘शूट एट साइट’ के आदेश जारी किए हैं, लेकिन विशेषज्ञ चेताते हैं कि असली समस्या जलवायु परिवर्तन, आवास ह्रास और मानवीय अतिक्रमण है। यह रिपोर्ट न केवल हालिया घटनाओं पर प्रकाश डालती है, बल्कि पिछले 10 वर्षों में राज्य के बदलते परिदृश्य, हमलों में वृद्धि के कारणों और इस वर्ष की भिन्नता पर विस्तार से चर्चा करती है।

भालू हमलों का काला अध्याय: हालिया घटनाएं जो थामने का नाम नहीं ले रही

उत्तराखंड के पहाड़ी इलाकों में भालू हमलों की खबरें अब रोजमर्रा की हो गई हैं। नवंबर 2025 में ही पौड़ी के बिरोखाल में एक महिला पर भालू ने हमला कर उसके चेहरे को बुरी तरह नोच डाला। चमोली के पोखरी ब्लॉक के पाव गांव में घास लेने गई रामेश्वरी देवी रात भर जंगल में घायल पड़ी रहीं; सुबह ग्रामीणों और वन विभाग की टीम ने उन्हें खून से लथपथ पेड़ की आड़ में पाया। एयरलिफ्ट कर उन्हें एम्स ऋषिकेश भेजा गया, जहां उनकी हालत गंभीर बनी हुई है। 0 इसी तरह, बागेश्वर की कमस्यार घाटी में गोविंद की पत्नी पर भालू ने दौड़ लगाई, जबकि दो शावकों के साथ भालू का झुंड ग्रामीण क्षेत्रों में घुस आया। पिथौरागढ़ के धारचूला में 11 अक्टूबर को पुष्कर राम पर हमला हुआ, और सितंबर में पौड़ी के चिचोली गांव में एक भालू ने 24 गाय-भैंसों को मार डाला।

वन विभाग के आंकड़ों के मुताबिक, 2000 से नवंबर 2025 तक भालुओं ने 2,009 लोगों पर हमला किया, जिसमें 71 मौतें हुईं। पशुधन पर हमले तो इससे कहीं अधिक हैं। मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने घायलों के लिए मुफ्त इलाज और मृतकों के परिजनों के लिए मुआवजे को 5 लाख से दोगुना 10 लाख रुपये करने के आदेश दिए हैं। 5 लेकिन ग्रामीणों का कहना है कि मुआवजा दर्द नहीं मिटा सकता। चमोली के एक ग्रामीण ने बताया, “रात को घर से बाहर निकलना मुश्किल हो गया है। बच्चे स्कूल जाने से डरते हैं। वन विभाग की टीम आती है, पटाखे फोड़ती है, लेकिन समस्या हल नहीं होती।”

क्यों बढ़े हमले? जलवायु परिवर्तन ने भालुओं को ‘कार्निवोर’ बना दिया

हिमालयी काले भालू सामान्यतः शाकाहारी होते हैं, जो ओक के फल (भमौर), काफल, जंगली बेरी और कीड़ों पर निर्भर रहते हैं। लेकिन विशेषज्ञों के अनुसार, हमलों में वृद्धि के पीछे जलवायु परिवर्तन मुख्य कारण है। इस वर्ष सर्दी की शुरुआत देर से हुई, ऊंचाई वाले क्षेत्रों में बर्फबारी न्यूनतम रही, जिससे भालू शीतनिद्रा (हाइबरनेशन) में नहीं जा पा रहे। वन्यजीव विशेषज्ञ रंगनाथ पांडे बताते हैं, “भालू ऊंचाई वाले क्षेत्रों से नीचे उतर आए हैं, भोजन की तलाश में तनावग्रस्त हो रहे हैं। यह असामान्य व्यवहार आक्रामकता पैदा कर रहा है। यदि यह ट्रेंड जारी रहा, तो भालू शीतनिद्रा छोड़ सकते हैं, जिससे संघर्ष और बढ़ेगा।” 1 19

वन्यजीव जीवविज्ञानी झाला के अनुसार, “ओक के जंगलों में भमौर फल कम हो गया है। पारंपरिक भालू निवास वाले क्षेत्रों में अब मानवीय दबाव बढ़ा है। भालू आबादी में अनदेखी वृद्धि भी संघर्ष बढ़ा रही है।” 0 कचरा प्रबंधन की कमी से खुले डंप पर भालू आकर्षित हो रहे हैं, जबकि फसलें (जैसे मक्का) पर छापेमारी आम हो गई है। साइंस डायरेक्ट के एक अध्ययन में कहा गया है कि हिमालयी क्षेत्र में मानव-वन्यजीव संघर्ष दशकों से बढ़ रहा है, लेकिन जलवायु परिवर्तन ने इसे तेज कर दिया। 12

पिछले 10 वर्षों में उत्तराखंड का बदलता चेहरा: वनों की कटाई, पर्यटन बूम और वन्यजीव गलियारों का संकुचन

पिछले दशक (2015-2025) में उत्तराखंड ने अभूतपूर्व विकास देखा, लेकिन यह पर्यावरण पर भारी पड़ा। राज्य का 65% क्षेत्र वनों से आच्छादित है, लेकिन ग्लोबल फॉरेस्ट वॉच के अनुसार, 2020 में 1,000 हेक्टेयर प्राकृतिक वन नष्ट हुए, जो 410 किलो टन CO₂ उत्सर्जन के बराबर है। 35 2015 से 2019 तक 2,850 हेक्टेयर वन भूमि गैर-वानिकी उपयोग (सड़कें, हाइड्रो प्रोजेक्ट, ट्रांसमिशन लाइन) के लिए डायवर्ट की गई। 43

जनसंख्या 2011 में 1.01 करोड़ से बढ़कर 2025 तक अनुमानित 1.2 करोड़ हो गई, जिससे शहरीकरण और कृषि विस्तार बढ़ा। पर्यटन में उछाल आया—2019 में चोपटा-तुमनाथ ट्रेक पर 4.88 लाख पर्यटक पहुंचे, जो औसतन 134 प्रति दिन है। 36 लेकिन अनियोजित इको-टूरिज्म ने अल्पाइन घास के मैदानों (बुग्याल) को क्षतिग्रस्त किया, जहां मोनाल (राज्य पक्षी) और तहर जैसे प्राणी निवास करते हैं। ड्राफ्ट इको-टूरिज्म पॉलिसी 2020 ने वनों को पर्यटन के लिए खोलने का प्रस्ताव दिया, जिससे वन्यजीव विशेषज्ञ चिंतित हैं। 46

वन्यजीव गलियारों का संकुचन सबसे गंभीर समस्या है। जिम कॉर्बेट-राजाजी कॉरिडोर (550 वर्ग किमी) जैसे मार्ग टूट रहे हैं, जो हाथी, बाघ और भालुओं के लिए महत्वपूर्ण हैं। जलवायु परिवर्तन से ठंडे आवास सिकुड़ रहे हैं, छोटे स्तनधारियों को 50% से अधिक रेंज खोनी पड़ रही है। 26 चिपको आंदोलन की विरासत के बावजूद, हाइड्रो प्रोजेक्ट और सड़कें (जैसे चारधाम परियोजना) ने जैव विविधता को नुकसान पहुंचाया।

आंकड़ों की कहानी: 2023-2024 की तुलना और 2025 की भयावहता

पिछले वर्षों के आंकड़े भालू हमलों में उतार-चढ़ाव दिखाते हैं, लेकिन 2025 असामान्य रूप से खतरनाक है। वन विभाग के आंकड़ों के अनुसार:

वर्षहमले (घायल)मौतें
20209910
202113
2022571
2023530
2024653
2025 (नवंबर तक)717

2023 में कोई मौत न होने के बावजूद 53 घायल हुए, जबकि 2024 में हमले 65 तक पहुंचे और 3 मौतें हुईं। लेकिन 2025 में केवल तीन महीनों में 71 हमले और 7 मौतें दर्ज की गईं—पिछले वर्ष की तुलना में 9% अधिक हमले और दोगुनी मौतें। 0 50 विशेषज्ञों का कहना है कि इस वर्ष की देरी से सर्दी और न्यूनतम बर्फबारी ने भालुओं को असामान्य रूप से सक्रिय रखा, जबकि पिछले वर्ष सामान्य मौसम के कारण शीतनिद्रा समय पर हुई।

समाधान की राह: जागरूकता, संरक्षण और सामुदायिक सहभागिता जरूरी

यह संकट केवल वन विभाग का नहीं, पूरे समाज का है। वन विभाग ने क्षेत्र-विशेष संघर्ष प्रबंधन योजना, स्टाफ प्रशिक्षण और ओक-काफल जैसे पौधों की रोपाई के निर्देश दिए हैं। 2 रेडियो-कॉलरिंग से भालुओं की निगरानी बढ़ाई जा रही है। 13 लेकिन लंबे समय के उपायों में वन्यजीव कॉरिडोरों को मजबूत करना, कचरा प्रबंधन सुधारना और इको-टूरिज्म को नियोजित रखना जरूरी है।

पर्यावरणविद डॉ. अनीता जोशी कहती हैं, “जलवायु परिवर्तन से संघर्ष बढ़ेगा, इसलिए समुदाय-आधारित संरक्षण पर जोर दें। स्कूलों में जागरूकता अभियान चलाएं, ताकि बच्चे वन्यजीवों से डरें नहीं, बल्कि सह-अस्तित्व सीखें।” सरकार को वन संरक्षण को प्राथमिकता देनी होगी, क्योंकि देवभूमि की जैव विविधता ही हमारी असली पूंजी है।

देवभूमि के लोग पाठकों से अपील करता है: जंगलों में अकेले न जाएं, कचरा न फैलाएं। यदि भालू दिखे, तो शोर मचाएं, पीछे न हटें। साइबर हेल्पलाइन 1930 पर संपर्क करें। देवभूमि सुरक्षित, तभी हमारा भविष्य हरा-भरा।

(संपादकीय टिप्पणी: यह रिपोर्ट वन विशेषज्ञों, पर्यावरणविदों के बयानों और हालिया घटनाओं पर आधारित है। )

By devbhoomikelog.com

News and public affairs

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *