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अस्कोट महोत्सव 2025: कार्तिकेयपुर वंशजों की उपस्थिति में अस्कोट में गूंजा गौरव का उत्सव

कुमाऊं की ऐतिहासिक और सांस्कृतिक परंपराओं का प्रतीक अस्कोट महोत्सव 2025 आज पारंपरिक रीति-रिवाजों और अपार उत्साह के बीच आरंभ हुआ। यह आयोजन न केवल कुमाऊं क्षेत्र की सांस्कृतिक विरासत को पुनर्जीवित करता है, बल्कि सूर्यवंशी क्षत्रिय परंपराओं की एकता का प्रतीक भी बन गया है।

महोत्सव का उद्घाटन अस्कोट महाराज कुंवर भानु राज पाल जी ने दीप प्रज्वलित कर किया। आयोजन का सफल संचालन श्री महेश पाल जी के नेतृत्व में गठित महोत्सव समिति एवं अखिल भारतीय क्षत्रिय महासभा, पिथौरागढ़ के सहयोग से हुआ।

मुख्य अतिथि कांग्रेस नेता श्री प्रदीप पाल जी ने अपने प्रेरक संबोधन में कहा—

“अस्कोट महोत्सव हमारी गौरवशाली परंपराओं का जीवंत प्रतीक है। यह न केवल सांस्कृतिक धरोहर को संजोए रखता है, बल्कि आने वाली पीढ़ियों को अपनी जड़ों से जोड़ने का कार्य भी करता है।”

उनके शब्दों ने उपस्थित जनसमूह में उत्साह और गर्व की लहर दौड़ा दी।


कत्युरी वंशजों की गौरवपूर्ण भागीदारी

इस वर्ष के आयोजन की विशेषता रही कि कार्तिकेयपुर राजवंश की अस्कोट शाखा से जुड़े कत्युरी वंशी समुदाय के सदस्य देशभर से पधारे।
महुली (बस्ती), हरिहरपुर, गोरखपुर, महासोन समेत अनेक क्षेत्रों से आए इन वंशजों ने अपनी ऐतिहासिक विरासत और वीरता की गाथाओं को साझा कर आयोजन में नई ऊर्जा भर दी।
इनकी उपस्थिति ने महोत्सव को “एकता और परंपरा” की जीवंत मिसाल बना दिया।


धार्मिक और सांस्कृतिक संगम का उत्सव

महोत्सव के दौरान लोक नृत्य, पारंपरिक गीत, सांस्कृतिक झांकियां और कुमाऊंनी व्यंजन मुख्य आकर्षण रहे। इन प्रस्तुतियों ने दर्शकों को कुमाऊं की प्राचीन लोक-संस्कृति से जोड़ दिया।
कार्यक्रम में अल्मोड़ा से पधारे आर्य जी सहित अनेक गणमान्य अतिथि उपस्थित रहे। आयोजकों ने सभी विशिष्ट अतिथियों को स्मृति चिन्ह भेंटकर सम्मानित किया।


मल्लिकार्जुन महादेव मंदिर का आस्था से भरा दर्शन

लेखक (अखिलेश बहादुर पाल) ने अस्कोट बाजार से लगभग 20 मिनट की ऊंची चढ़ाई तय कर मल्लिकार्जुन महादेव मंदिर के दर्शन किए। पंचचूली की हिमाच्छादित चोटियों के बीच स्थित यह प्राचीन मंदिर आस्था, इतिहास और आध्यात्मिक शांति का अद्भुत संगम है।
घंटियों की मधुर ध्वनि और भक्तों के जयकारों के बीच वातावरण श्रद्धा से भर उठा। ऊँचाई से दिखने वाली काली नदी की घाटियाँ मानो अस्कोट की विरासत की कहानी बयां कर रही थीं।


अस्कोट महोत्सव का ऐतिहासिक महत्व

अस्कोट महोत्सव केवल एक सांस्कृतिक आयोजन नहीं, बल्कि कुमाऊं की आत्मा और क्षत्रिय परंपराओं का जीवंत उत्सव है। यह कार्तिकेयपुर राजवंश, अस्कोट की ऐतिहासिक धरोहर और सूर्यवंशी गौरव की अमर गाथा को पुनः जन-जन तक पहुँचाने का माध्यम है।


भविष्य की दिशा

स्थानीय निवासियों और आयोजकों ने महोत्सव की सफलता पर हर्ष व्यक्त किया। सभी ने यह उम्मीद जताई कि आने वाले वर्षों में अस्कोट महोत्सव और भी भव्य स्वरूप में आयोजित होगा, जिससे उत्तराखंड की सांस्कृतिक पहचान को नई ऊँचाइयाँ मिलेंगी।


📜 यह आयोजन विरासत, वीरता और एकता का प्रतीक बनकर इतिहास के पन्नों में दर्ज हो गया है — जहाँ आस्था और संस्कृति ने एक साथ उत्सव मनाया।

By devbhoomikelog.com

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