उत्तराखंड के अल्मोड़ा जिले के चोखटिया क्षेत्र में हिमालयन ब्लैक भालू के हमले ने एक बार फिर मानव-वन्यजीव संघर्ष की गंभीरता उजागर कर दी है। चारा-पत्ती लेने जंगल गई दो महिलाओं पर भालू ने अलग-अलग समय पर हमला कर दिया, जिससे दोनों गंभीर रूप से घायल हो गईं। ग्रामीणों की मदद से उन्हें जंगल से बाहर निकालकर अस्पताल में भर्ती कराया गया, जहां उनका उपचार चल रहा है।
यह घटना कोई अपवाद नहीं, बल्कि राज्य में लगातार बढ़ते भालू हमलों की एक और कड़ी है। पहाड़ी इलाकों में ग्रामीणों के लिए जंगल जाना, खेतों में काम करना और मवेशियों की देखभाल करना जान जोखिम में डालने जैसा हो गया है।
मानव-वन्यजीव संघर्ष गहराया, विभागीय व्यवस्था पर उठे सवाल
स्थानीय लोगों का कहना है कि वन विभाग की टीमें अक्सर घटनाओं के बाद ही मौके पर पहुंचती हैं, जबकि रोकथाम के लिए ठोस और स्थायी उपायों का अभाव है। ग्रामीण क्षेत्रों में गश्त, चेतावनी तंत्र और सुरक्षा उपाय पर्याप्त नहीं हैं, जिससे भय का माहौल बना हुआ है।
विशेषज्ञों के अनुसार, जलवायु परिवर्तन के कारण कम बर्फबारी और मौसम में बदलाव से भालू समय पर हाइबरनेशन नहीं कर पा रहे हैं और भोजन की तलाश में आबादी वाले क्षेत्रों की ओर बढ़ रहे हैं। इसके बावजूद जंगलों में प्राकृतिक भोजन स्रोत बढ़ाने, कचरा प्रबंधन और संवेदनशील इलाकों में निगरानी बढ़ाने जैसे कदम सीमित नजर आ रहे हैं।
भालू हमलों के आंकड़े चिंता बढ़ाने वाले
- वर्ष 2025 में अब तक 74 से अधिक भालू हमले, जिनमें 7 लोगों की मौत दर्ज
- पिछले 25 वर्षों में भालू हमलों से 71 मौतें और 2,000 से अधिक लोग घायल
- पौड़ी, चमोली, रुद्रप्रयाग, पिथौरागढ़ और उत्तरकाशी जैसे जिलों में घटनाओं में तेजी
- कई क्षेत्रों में मवेशियों पर हमले और फसलों को नुकसान
घोषणाएं हुईं, लेकिन असर सीमित
वन विभाग की ओर से कुछ क्षेत्रों में शूट-एट-साइट आदेश और मुआवजा राशि बढ़ाने जैसे कदम उठाए गए हैं, लेकिन ग्रामीणों का कहना है कि जमीनी स्तर पर इनका असर दिखाई नहीं देता। शाम ढलते ही लोग घरों में सिमट जाते हैं और बच्चों को स्कूल भेजने तक में डर लगता है।
ग्रामीणों और सामाजिक संगठनों की मांग है कि
- संवेदनशील इलाकों में नियमित गश्त
- अलर्ट सिस्टम और रैपिड रिस्पॉन्स टीम
- जंगलों में भोजन और पानी की व्यवस्था
- वैज्ञानिक स्तर पर दीर्घकालिक वन्यजीव प्रबंधन नीति
को तुरंत लागू किया जाए।
भालू का बढ़ता आतंक अब केवल वन्यजीव समस्या नहीं, बल्कि जन-सुरक्षा का बड़ा मुद्दा बन चुका है। सवाल यही है कि हालात को काबू में लाने के लिए ठोस और प्रभावी कार्रवाई कब होगी?
