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उत्तराखंड में GLOF खतरे की विस्तृत रिपोर्ट: हिमालयी झीलों का बढ़ता संकट और राज्य की तैयारी

विशेष रिपोर्ट, 27 नवंबर, 2025, देहरादून, उत्तराखंड

उत्तराखंड, हिमालय की गोद में बसा यह राज्य, अपनी प्राकृतिक सुंदरता के साथ-साथ प्रलयंकारी आपदाओं का भी घर है। ग्लेशियर झील विस्फोट बाढ़ (Glacial Lake Outburst Flood – GLOF) एक ऐसी आपदा है जो तेजी से बढ़ते जलवायु परिवर्तन के कारण राज्य के लिए गंभीर खतरा बन रही है। GLOF तब होता है जब ग्लेशियरों के पिघलने से बनी झीलें अचानक टूट जाती हैं, जिससे विशाल जलराशि नीचे की घाटियों में तेज गति से बहती है। यह बाढ़ न केवल मानव जीवन को निगल लेती है, बल्कि बुनियादी ढांचे, कृषि और पर्यावरण को भी तबाह कर देती है। 2025 में राज्य में कई GLOF-संबंधित घटनाओं ने इस खतरे को और उजागर किया है। इस रिपोर्ट में हम GLOF के वैज्ञानिक आधार, ऐतिहासिक घटनाओं, वर्तमान जोखिमों, कारणों और समाधानों पर विस्तार से चर्चा करेंगे।

GLOF क्या है? वैज्ञानिक समझ

GLOF एक प्राकृतिक आपदा है जिसमें हिमालयी क्षेत्रों में ग्लेशियरों के पिघलने से बनी झीलें अचानक फट जाती हैं। ये झीलें आमतौर पर ग्लेशियरों के टूटने या भूस्खलन से बनती हैं। झील के टूटने के ट्रिगर हो सकते हैं: भूकंप, भूस्खलन, बर्फ का हिमस्खलन या अत्यधिक वर्षा। टूटने पर लाखों लीटर पानी की धारा 100 किमी/घंटा की रफ्तार से बहती है, जो रास्ते में सब कुछ बहा ले जाती है। हिमालय में 28,000 से अधिक ग्लेशियर झीलें हैं, जिनमें से कई GLOF के लिए संवेदनशील हैं। उत्तराखंड में, गंगोत्री और यमुनोत्री जैसे ग्लेशियर क्षेत्र सबसे अधिक प्रभावित हैं।

वैज्ञानिकों के अनुसार, जलवायु परिवर्तन के कारण ग्लेशियर तेजी से पिघल रहे हैं, जिससे झीलों का आकार बढ़ रहा है। एक हालिया अध्ययन में हिमालयी बेसिन में कई ‘ओवर-डीपन्ड जोन’ (गहरी घाटियां) की पहचान की गई है, जो भविष्य में नई झीलें बना सकती हैं और GLOF जोखिम को बढ़ा सकती हैं।

उत्तराखंड में GLOF का ऐतिहासिक संदर्भ

उत्तराखंड GLOF का सबसे अधिक प्रभावित राज्य रहा है। 2013 की केदारनाथ त्रासदी इसका सबसे बड़ा उदाहरण है, जहां चोराबारी ताल (GLOF) के कारण बादल फटने और भूस्खलन के साथ मिलकर सैकड़ों मौतें हुईं और अरबों का नुकसान हुआ। 2021 में चमोली में जोशीमठ के पास एक GLOF घटना ने नंदा देवी ग्लेशियर को प्रभावित किया। 2022 में सैटेलाइट इमेजरी से एक ग्लेशियर झील की पहचान हुई, जो धराली आपदा के पीछे GLOF सिद्धांत को मजबूत करती है।

2023-2024 में सिक्किम GLOF (साउथ ल्होनाक) ने पूरे हिमालय को चेतावनी दी, जहां 1,250 मेगावाट का चुथांग बांध तबाह हो गया और 20 अरब डॉलर का नुकसान हुआ। उत्तराखंड में भी इसी तरह के जोखिम बढ़ रहे हैं।

2025 में वर्तमान GLOF खतरे: राज्य में हाल की घटनाएं

2025 को उत्तराखंड के लिए GLOF का ‘वर्ष’ कहा जा सकता है। राज्य में कम से कम तीन प्रमुख घटनाओं ने खतरे को प्रत्यक्ष रूप से उजागर किया:

  1. धराली चेन रिएक्शन (5 अगस्त 2025): उत्तरकाशी जिले के धराली गांव में बादल फटने से एक अस्थायी झील बनी, जो GLOF का कारण बनी। इससे भूस्खलन और बाढ़ आई, जिसमें चार मौतें हुईं और 50 से अधिक लोग लापता हैं। यह घटना हिमालयी क्षेत्रों में ‘कैस्केड इफेक्ट’ (एक आपदा से दूसरी) का उदाहरण है।
  2. उत्तरकाशी क्लाउडबर्स्ट और अस्थायी झील (12 अगस्त 2025): उत्तरकाशी में बादल फटने से एक नई झील बनी, जो आगे बाढ़ का खतरा पैदा कर रही है। विकिपीडिया के अनुसार, यह घटना राज्य के हाइड्रो प्रोजेक्ट्स को खतरे में डाल रही है।
  3. तेजी से बढ़ती हिमालयी झील (नवंबर 2025): एक नई रिपोर्ट में एक हिमालयी झील के तेजी से विस्तार की चेतावनी दी गई है, जो घातक GLOF का कारण बन सकती है। वैज्ञानिकों ने राज्य सरकार को तत्काल निगरानी और निकासी की सलाह दी है।

इन घटनाओं से पता चलता है कि GLOF अब मौसमी नहीं, बल्कि साल भर का खतरा है। किश्तवार (जम्मू-कश्मीर) में भी चार हाइड्रो प्रोजेक्ट्स GLOF के उच्च जोखिम में हैं, जो उत्तराखंड के पड़ोसी क्षेत्रों को प्रभावित कर सकता है।

GLOF के कारण: जलवायु परिवर्तन की भूमिका

GLOF के पीछे मुख्य कारण जलवायु परिवर्तन है। 2023-2024 पृथ्वी के सबसे गर्म वर्ष रहे, जिससे ग्लेशियर पिघलाव बढ़ा। हिमालय में तापमान वृद्धि वैश्विक औसत से दोगुनी है, जिससे झीलें 10% भूमि को प्रभावित कर रही हैं। अनुमान है कि भारत में 20 लाख से अधिक लोग GLOF जोखिम में हैं। अन्य कारण: भूकंप, मानवीय गतिविधियां (जैसे बांध निर्माण) और ढीली मिट्टी।

एक अध्ययन में उत्तराखंड में 100 से अधिक संभावित खतरनाक ग्लेशियर झीलों की पहचान की गई है, जो डाउनस्ट्रीम समुदायों के लिए खतरा हैं।

प्रभाव: मानव, आर्थिक और पर्यावरणीय नुकसान

  • मानवीय: हजारों मौतें, विस्थापन। 2013 केदारनाथ में 5,000 से अधिक हताहत।
  • आर्थिक: बांध, सड़कें और पर्यटन तबाह। सिक्किम GLOF से 2 अरब डॉलर का नुकसान।
  • पर्यावरणीय: नदियों का मार्ग बदलना, जैव विविधता हानि। टिस्टा नदी का बिस्तर कई मीटर ऊंचा हो गया।

उत्तराखंड में हाइड्रो प्रोजेक्ट्स (10,000 करोड़ से अधिक निवेश) सबसे अधिक जोखिम में हैं।

निगरानी और शमन प्रयास: क्या हो रहा है?

भारत सरकार ने 20 मिलियन डॉलर का राष्ट्रीय GLOF शमन कार्यक्रम शुरू किया है, जो भारतीय तकनीक पर आधारित है। उत्तराखंड में:

  • निगरानी नेटवर्क: अमेरिकन मीटियोरोलॉजिकल सोसाइटी के सहयोग से GLOF मॉनिटरिंग सिस्टम स्थापित हो रहा है।
  • प्रारंभिक चेतावनी: रिमोट सेंसिंग और सैटेलाइट इमेजरी का उपयोग।
  • नीतिगत ढांचा: स्प्रिंगर जर्नल में प्रकाशित एक रणनीतिक फ्रेमवर्क GLOF जोखिम प्रबंधन के लिए।

हालांकि, चुनौतियां बनी हुई हैं: सीमित संसाधन और जमीनी स्तर पर जागरूकता की कमी।

सिफारिशें: भविष्य के लिए रोडमैप

  1. उन्नत निगरानी: ड्रोन और AI-आधारित सेंसर से झीलों की रीयल-टाइम मॉनिटरिंग।
  2. समुदाय जागरूकता: स्थानीय निवासियों को निकासी योजनाओं का प्रशिक्षण।
  3. नीतिगत एकीकरण: जलवायु परिवर्तन को GLOF नीतियों में शामिल करना।
  4. अंतरराष्ट्रीय सहयोग: नेपाल और भूटान के साथ संयुक्त GLOF पूर्वानुमान।
  5. बुनियादी ढांचा मजबूती: बांधों और सड़कों का GLOF-प्रतिरोधी डिजाइन।

GLOF उत्तराखंड के लिए एक मौन हत्यारा है, जो जलवायु संकट के साथ तेजी से बढ़ रहा है। 2025 की घटनाएं—धराली से लेकर उत्तरकाशी तक—चेतावनी हैं कि बिना तत्काल कार्रवाई के, हिमालय टूट सकता है। राज्य सरकार, वैज्ञानिकों और समुदायों को एकजुट होकर इस खतरे का सामना करना होगा। GLOF न केवल आपदा है, बल्कि जलवायु न्याय की मांग भी।

By devbhoomikelog.com

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