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सोशल मीडिया के जाल में फंसी पहचान: उत्तराखंड की रीना चौहान बनीं ‘फरजाना अख्तर’, बांग्लादेशी प्रेमी के साथ फर्जी दस्तावेजों का खेल—जागरूकता की घंटी बजी

देहरादून, 24 नवंबर 2025 (देवभूमि के लोग विशेष संवाददाता): सोशल मीडिया के चकाचौंध भरे संसार में प्रेम की कहानियां अक्सर वायरल होती हैं, लेकिन कभी-कभी ये कहानियां पहचान की चोरी, फर्जी दस्तावेजों और राष्ट्रीय सुरक्षा के खतरे में बदल जाती हैं। उत्तराखंड के त्यूणी क्षेत्र की रहने वाली रीना चौहान का मामला इसी कड़वी सच्चाई का जीता-जागता उदाहरण है। फेसबुक पर शुरू हुई एक साधारण दोस्ती ने उन्हें न केवल बांग्लादेश ले जाकर ‘फरजाना अख्तर’ बना दिया, बल्कि फर्जी पहचान दस्तावेजों के जाल में फंसा दिया। देहरादून पुलिस की जांच में सामने आया यह मामला सोशल मीडिया के खतरों को उजागर कर रहा है, जहां युवा पीढ़ी भावनाओं के बहाव में बहकर अपनी सुरक्षा और पहचान को दांव पर लगा देती है। विशेषज्ञों का कहना है कि ऐसे मामलों से सबक लेते हुए सरकार को तत्काल जागरूकता अभियान चलाने चाहिए, ताकि देवभूमि की नई पीढ़ी इन जालों से सावधान रहे।

फेसबुक से निकाह तक: प्रेम की आड़ में छिपा धोखा

मामला तब शुरू हुआ जब रीना चौहान, उत्तराखंड के देहरादून जिले के त्यूणी क्षेत्र की एक साधारण युवती, फेसबुक पर बांग्लादेश के 28 वर्षीय युवक ममून हसन से जुड़ीं। कुछ महीनों की चैटिंग और वीडियो कॉल्स ने दोस्ती को प्रेम में बदल दिया। ममून ने टूरिस्ट वीजा पर कई बार भारत प्रवेश किया और देहरादून में रीना के साथ रहने लगा। लेकिन असल खेल तब शुरू हुआ जब ममून बांग्लादेश लौट गया। उसने रीना को मनाने के लिए न केवल बांग्लादेश बुलाया, बल्कि वहां उसकी पहचान बदल दी—रीना चौहान अब ‘फरजाना अख्तर’ बन चुकी थीं।

बांग्लादेश पहुंचते ही रीना को मुस्लिम परिधान—बुर्खा—पहनाया गया और दोनों ने वहां निकाह कर लिया। भारत में रीना हिंदू पहचान के साथ मंगलसूत्र पहनती रहीं, तो बांग्लादेश में वे पूरी तरह मुस्लिम बन गईं। जांच में खुलासा हुआ कि ममून ने रीना के पूर्व पति सचिन के नाम पर फर्जी पहचान दस्तावेज तैयार करवाए, जिसमें रीना के कुछ रिश्तेदार भी शामिल पाए गए। इन दस्तावेजों में जन्म प्रमाण पत्र और निवास प्रमाण पत्र जैसे महत्वपूर्ण कागजात शामिल थे, जो पहचान धोखाधड़ी का स्पष्ट प्रमाण हैं।

20 नवंबर को देहरादून पुलिस ने पहचान छिपाकर रह रहे दो जोड़ों को गिरफ्तार किया, जिसमें ममून की पुष्टि हुई। एसएसपी अजय सिंह ने बताया, “यह मामला केवल प्रेम या विवाह का नहीं है। फर्जी दस्तावेजों और दोहरी पहचान के पीछे एंटी-नेशनल गतिविधियों की संभावना भी जांचा जा रहा है। इंटेलीजेंस एजेंसियां यह खंगाल रही हैं कि क्या ममून किसी बड़े नेटवर्क से जुड़ा है और क्या रीना को गुमराह कर भारत में घुसपैठ की साजिश रची गई।” पुलिस को शक है कि ऐसे फर्जी दस्तावेजों का इस्तेमाल अवैध प्रवेश या अन्य आपराधिक गतिविधियों के लिए किया जा सकता था।

सोशल मीडिया युग के खतरे: भावनाओं का बाजार, जहां पहचान बिकती है

यह घटना डिजिटल युग की उस काली सच्चाई को उजागर करती है, जहां सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स प्रेम, दोस्ती और अवसरों का बाजार बन चुके हैं, लेकिन साथ ही धोखे, साइबर अपराधों और पहचान चोरी का अड्डा भी। फेसबुक, इंस्टाग्राम या व्हाट्सएप जैसी साइट्स पर हर दिन लाखों लोग जुड़ते हैं, लेकिन वे भूल जाते हैं कि स्क्रीन के पीछे छिपी पहचानें फर्जी हो सकती हैं। रीना का मामला दिखाता है कि कैसे एक साधारण चैट भावनाओं को भड़का सकती है, जिसका अंत पहचान बदलने, फर्जी विवाह और राष्ट्रीय सुरक्षा को खतरे में डालने तक पहुंच जाता है।

विशेषज्ञों के अनुसार, सोशल मीडिया के इन प्रभावों से युवा पीढ़ी सबसे ज्यादा प्रभावित हो रही है। मनोवैज्ञानिक डॉ. जोशी कहती हैं, “आज के बच्चे और युवा ऑनलाइन दुनिया में इतने डूबे हैं कि वे वास्तविकता और वर्चुअल की सीमा भूल जाते हैं। प्रेम का लालच या अकेलापन उन्हें फर्जी प्रोफाइल्स के जाल में फंसा देता है, जिससे न केवल व्यक्तिगत सुरक्षा खतरे में पड़ती है, बल्कि सामाजिक और राष्ट्रीय स्तर पर भी चुनौतियां खड़ी होती हैं।” साइबर क्राइम विशेषज्ञ प्रो. राजेश कुमार का मत है कि ऐसे मामलों में पहचान धोखाधड़ी (आइडेंटिटी फ्रॉड) 70 प्रतिशत से अधिक सोशल मीडिया से जुड़ी होती है। वे चेताते हैं, “युवाओं को सिखाना होगा कि ऑनलाइन दोस्ती से पहले वेरिफिकेशन जरूरी है। वीडियो कॉल या मीटिंग से पहले बैकग्राउंड चेक अनिवार्य हो।”

उत्तराखंड जैसे शांतिप्रिय राज्य में, जहां पर्यटन और शिक्षा केंद्रित अर्थव्यवस्था है, सोशल मीडिया के ये खतरे और गंभीर हैं। यहां के युवा अक्सर ऑनलाइन कनेक्शन्स के जरिए वैश्विक दुनिया से जुड़ते हैं, लेकिन बिना जागरूकता के ये कनेक्शन घातक साबित हो सकते हैं। हाल के आंकड़ों के मुताबिक, भारत में हर साल 50,000 से अधिक साइबर फ्रॉड के मामले दर्ज होते हैं, जिनमें 40 प्रतिशत पहचान चोरी से जुड़े हैं। उत्तराखंड में ही पिछले एक साल में 500 से ज्यादा ऐसे मामले सामने आए हैं, जो सोशल मीडिया से प्रेरित हैं।

जागरूकता की जरूरत: शिक्षित करें, संवेदनशील बनाएं नई पीढ़ी

इस घटना ने न केवल रीना के परिवार को झकझोर दिया है, बल्कि पूरे समाज को सोचने पर मजबूर कर दिया है। विशेषज्ञों का कहना है कि सोशल मीडिया के इन प्रभावों को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता। स्कूलों, कॉलेजों और समुदायों में जागरूकता कार्यक्रम चलाने की सख्त जरूरत है। अभिभावक, शिक्षक और दोस्तों को युवाओं को सिखाना होगा कि ऑनलाइन दुनिया में हर चमकती स्क्रीन के पीछे खतरा छिपा हो सकता है। साइबर सुरक्षा के बेसिक नियम—जैसे प्राइवेसी सेटिंग्स चेक करना, फर्जी प्रोफाइल्स की पहचान और तत्काल रिपोर्टिंग—हर घर में सिखाए जाने चाहिए।

सामाजिक कार्यकर्ता मीरा पांडे कहती हैं, “हमारी नई पीढ़ी को संवेदनशील बनाना होगा। सोशल मीडिया केवल मनोरंजन का साधन नहीं, बल्कि जिम्मेदारी का प्लेटफॉर्म है। माता-पिता को बच्चों की ऑनलाइन एक्टिविटी पर नजर रखनी चाहिए, बिना उनकी आजादी छीने।” इसी कड़ी में, उत्तराखंड सरकार को निर्देश जारी करने चाहिए कि जिला प्रशासन, जनप्रतिनिधि, शिक्षक और शैक्षणिक संस्थान मिलकर राज्यव्यापी जागरूकता अभियान चलाएं। स्कूलों में साइबर सेफ्टी को पाठ्यक्रम का हिस्सा बनाया जाए, पंचायत स्तर पर वर्कशॉप आयोजित हों और पुलिस थानों में हेल्पलाइन डेस्क स्थापित किए जाएं। केंद्र सरकार के साइबर सूरक्षा मिशन को स्थानीय स्तर पर लागू करने से ऐसे मामलों को रोका जा सकता है।

सरकार की भूमिका: तत्काल कदम उठाएं, देवभूमि को सुरक्षित बनाएं

यह मामला उत्तराखंड सरकार के लिए एक चेतावनी है। मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी को निर्देश देना चाहिए कि संबंधित विभाग—जैसे शिक्षा, सूचना एवं जनसंपर्क और पुलिस—को सोशल मीडिया जागरूकता के लिए एकीकृत योजना तैयार करने का आदेश दिया जाए। जनप्रतिनिधियों को गांव-गांव पहुंचकर लोगों को शिक्षित करने की जिम्मेदारी सौंपी जाए। शिक्षकों को प्रशिक्षण दिया जाए कि वे कक्षाओं में डिजिटल साक्षरता पर जोर दें। संस्थानों जैसे आईआईटी रुड़की या हेमवती नंदन बहुगुणा विश्वविद्यालय को साइबर फ्रॉड पर रिसर्च और वर्कशॉप आयोजित करने के लिए प्रोत्साहित किया जाए।

यदि सरकार इन कदमों को उठाती है, तो न केवल रीना जैसे मामले रुकेंगे, बल्कि उत्तराखंड की युवा पीढ़ी डिजिटल दुनिया में सुरक्षित और सशक्त बनेगी। याद रखें, सोशल मीडिया एक औजार है, हथियार नहीं। इसे सही इस्तेमाल से ही हम अपनी पहचान और सुरक्षा को बचा सकते हैं।

देवभूमि के लोग इस मुद्दे पर पाठकों से अपील करता है: अपनी कहानियां साझा करें, जागरूकता फैलाएं। यदि आपको कोई संदिग्ध ऑनलाइन संपर्क लगे, तो तुरंत साइबर सेल (1930) पर कॉल करें। देवभूमि सुरक्षित, तभी हमारा भविष्य उज्ज्वल।

संपर्क-
B P Singh,
Devbhoomikelog001@gmail.com
9412042100

(संपादकीय टिप्पणी: यह रिपोर्ट पुलिस जांच और उपलब्ध तथ्यों पर आधारित है। जांच जारी है, अतिरिक्त अपडेट्स के लिए जुड़े रहें।)

By devbhoomikelog.com

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