देहरादून, 24 नवंबर 2025 – फर्जी दिव्यांगता प्रमाणपत्र से नौकरी हथियाने के मामले में शिक्षा विभाग ने 51 शिक्षकों को नोटिस थमाया है, लेकिन इस पूरे प्रकरण ने विभाग की कार्यप्रणाली पर गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं।
सबसे बड़ा सवाल यही है –
अगर नेशनल फेडरेशन ऑफ द ब्लाइंड हाईकोर्ट न जाता, तो क्या ये 51 फर्जी शिक्षक आज भी आराम से तनख्वाह लेते रहते?
अगर कोई कोर्ट न जाए, कोई PIL न दायर करे, तो विभाग को कुछ पता ही नहीं चलता?
यानी अवैध काम बिना रुके चलता रहेगा और किसी की कोई जवाबदेही ही नहीं है?
सूत्र बता रहे हैं कि ये 51 मामले तो सिर्फ शुरुआत हैं। विभाग के पास न तो कोई स्वतः संज्ञान लेने की व्यवस्था है, न ही नियमित ऑडिट का सिस्टम। फाइलें सालों धूल खाती रहती हैं और फर्जीवाड़ा पकड़ा जाता है सिर्फ तब, जब कोई बाहर से चिल्लाए – कोर्ट जाए, धरना दे या मीडिया में खबर चले।
युवा और सामाजिक संगठनों का सीधा आरोप –
“विभाग सोया रहता है, कोर्ट जागता है तो काम होता है।
न जवाबदेही है, न समय-सीमा, न सजा का डर।
फर्जी दिव्यांग, फर्जी डिग्री, फर्जी अनुभव प्रमाणपत्र – सब चलता रहा और चलता रहेगा, क्योंकि कोई अधिकारी जिम्मेदार नहीं ठहराया जाता।”
शिक्षा मंत्री और सचिव को खुला सवाल –
- पिछले 5 साल में कितनी भर्तियों का स्वतः सत्यापन हुआ?
- कितने अधिकारियों पर फर्जी प्रमाणपत्र स्वीकार करने की वजह से कार्रवाई हुई?
- जवाब: शून्य।
अब बेरोजगार युवा और दिव्यांग संगठन एक स्वर में मांग कर रहे हैं:
- हर भर्ती के बाद 6 महीने के अंदर 100% दस्तावेजों का डिजिटल ऑडिट अनिवार्य हो।
- फर्जी प्रमाणपत्र स्वीकार करने वाले अधिकारी पर भी उतनी ही सजा हो, जितनी फर्जी उम्मीदवार पर।
- बिना कोर्ट के आदेश के भी विभाग स्वतः संज्ञान ले, इसके लिए नोडल अफसर नियुक्त हों।
जब तक जवाबदेही तय नहीं होगी, तब तक फर्जीवाड़ा नहीं रुकेगा – यह बात अब साफ दिख रही है।
क्या उत्तराखंड शिक्षा और अन्य विभाग अब भी कोर्ट के इंतजार में रहेगी, या खुद जागेगी?
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