देवभूमि के लोग, देहरादून, 17 नवंबर 2025 – डिजिटल इंडिया और 5G क्रांति के जमाने में जहां स्मार्टफोन की एक झलक में दुनिया जुड़ जाती है, वहीं उत्तराखंड के सरकारी विभागों की वेबसाइट्स और पोर्टल्स पर आज भी 20-30 साल पुराने लैंडलाइन नंबर चमक रहे हैं। ये नंबर, जो कभी 1990-2000 के दशक में काम करते थे, अब या तो बंद हैं या अनुपलब्ध – लेकिन विभाग इन्हें हटाने या अपडेट करने की जहमत नहीं उठा रहे। नतीजा? आम नागरिकों को सरकारी सेवाओं के लिए घंटों फोन घुमाने पड़ते हैं, और संपर्क हीन होने से जमीन के रिकॉर्ड से लेकर पेंशन तक की समस्याएं लटक जाती हैं। क्या ये लापरवाही नहीं है, जो देवभूमि की ‘स्मार्ट गवर्नेंस’ की छवि को धूमिल कर रही है?
हाल के दिनों में देहरादून और कुमाऊं क्षेत्र से कई शिकायतें सामने आई हैं, जहां बीएसएनएल के पुराने लैंडलाइन कनेक्शन महीनों से बंद पड़े हैं, लेकिन सरकारी साइट्स पर इन्हीं नंबरों को ‘सक्रिय’ दिखाया जा रहा है। उदाहरण के तौर पर, देहरादून के रायपुर और लदपुर इलाकों में बीएसएनएल लाइनें 6 दिनों से डाउन हैं, और स्थानीय कार्यालय के मुताबिक बहाली में 3 हफ्ते लग सकते हैं। इसी तरह, नैनीताल और हल्द्वानी के तहसील कार्यालयों या एसडीएम ऑफिसों की वेबसाइट्स (जैसे uk.gov.in या जिला पोर्टल्स) पर 0135 या 05946 जैसे पुराने कोड वाले नंबर सूचीबद्ध हैं, जो अब रिंग ही नहीं करते, कुछ ऐसा ही हाल अन्य विभागों का है।
एक हल्द्वानी के स्थानीय निवासी ने बताया, “मैंने भूमि रिकॉर्ड के लिए फोन किया, लेकिन लाइन डेड। फिर ईमेल ट्राई किया, वो भी बाउंस हो गया। आखिरकार, व्यक्तिगत रूप से जाना पड़ा – ये तो 5G का जमाना है, सरकारी अमला तो अभी भी 2G पर अटका हुआ लगता है!”
क्यों हो रही है ये लापरवाही?
- पुरानी तकनीक का भूत: अधिकांश विभाग अभी भी बीएसएनएल के पुराने लैंडलाइन पर निर्भर हैं, जो अब विश्वसनीय नहीं। 2025 में भी वेबसाइट्स पर मोबाइल नंबर या ईमेल अपडेट नहीं हो रहे, जबकि डिजिटल इंडिया के तहत ये अनिवार्य होना चाहिए।
- कोई निगरानी नहीं: विभागों में संपर्क विवरण की नियमित ऑडिट का अभाव। आरटीआई एक्ट और सिटिजन चार्टर के बावजूद, अपडेट न करने पर कोई सजा नहीं।
- जनता पर बोझ: ग्रामीण क्षेत्रों में, जहां मोबाइल सिग्नल भी कमजोर हैं (जैसे दर्मा घाटी में), ये पुराने नंबर तो बस दिखावा हैं। बुजुर्गों और दूरदराज के निवासियों को सबसे ज्यादा तकलीफ – स्वास्थ्य आपातकाल या शिकायत निवारण में देरी हो रही है।
व्हाट्सएप हेल्पलाइन या क्यूआर कोड वाले डिजिटल कार्ड्स को अनिवार्य किया जाए। इसी दिशा में, देवभूमि के लोग के संपादक ने मुख्य सचिव, उत्तराखंड को ईमेल के माध्यम से इस मुद्दे पर सख्त दिशानिर्देश जारी करने की मांग की है।
क्या आपको भी ऐसी परेशानी झेलनी पड़ी है? devbhoomikelog001@gmail.com पर अपनी कहानी शेयर करें, और सरकार तक आवाज पहुंचाएं। अपडेट्स के लिए बने रहें – क्योंकि संपर्क ही सेवा का पहला कदम है!
(Report- Bhanu Pratap Singh, Devbhoomikelog)
