नैनीताल हाईकोर्ट ने ऊधमसिंह नगर के पारिवारिक न्यायालय द्वारा नर्स को 20 हजार रुपये प्रतिमाह गुजारा भत्ता देने के आदेश को बरकरार रखा है। साथ ही कोर्ट ने आदेश की प्रभावी तिथि में संशोधन करते हुए कहा कि भरण-पोषण अप्रैल 2019 से लागू माना जाएगा, जिस दिन महिला ने आवेदन किया था।
“सिर्फ योग्यता से अधिकार खत्म नहीं होता” — हाईकोर्ट
न्यायमूर्ति आशीष नैथानी की एकलपीठ ने डॉक्टर पति की अपील पर सुनवाई करते हुए स्पष्ट किया कि
महिला को सिर्फ इसलिए गुजारा भत्ता से वंचित नहीं किया जा सकता कि वह प्रोफेशनली क्वालिफाइड नर्स है।
कोर्ट ने कहा कि भरण-पोषण का अधिकार केवल योग्यता पर नहीं, बल्कि व्यक्ति की वास्तविक आय और रोजगार क्षमता पर निर्भर करता है। चूंकि महिला के पास कोई स्थायी आय नहीं है और वह माता-पिता पर निर्भर है, इसलिए उसे भरण-पोषण का अधिकार है।
अप्रैल 2019 से लागू होगा गुजारा भत्ता, पति को छह महीने में चुकाने होंगे बकाया
पारिवारिक न्यायालय ने फरवरी 2025 में महिला को 20,000 रुपये मासिक अंतरिम भरण-पोषण दिया था, लेकिन भुगतान आदेश की तारीख से लागू किया गया था।
हाईकोर्ट ने इसे संशोधित करते हुए कहा कि भरण-पोषण आवेदन तारीख (6 अप्रैल 2019) से माना जाएगा।
इस संशोधन के चलते जो बकाया राशि बनती है, उसे डॉक्टर पति को छह महीने के भीतर समान मासिक किस्तों में अदा करना होगा।
पति की दलीलें अदालत में नहीं चलीं
डॉक्टर पति ने तर्क दिया कि—
- गुजारा भत्ता राशि बहुत अधिक है,
- पत्नी एक प्रशिक्षित GNM नर्स है, इसलिए खुद कमा सकती है,
- उसकी अपनी आय सीमित है।
लेकिन अदालत ने कहा कि:
- महिला के कार्यरत होने के कोई प्रमाण नहीं मिले,
- केवल योग्यता “आय होने” के बराबर नहीं मानी जा सकती,
- भरण-पोषण का उद्देश्य अभाव और आर्थिक असुरक्षा से बचाना है, जैसा कि सीआरपीसी की धारा 125 में स्पष्ट है।
निष्कर्ष: नर्स को मिली कानूनी राहत
हाईकोर्ट ने पारिवारिक न्यायालय के फैसले को सही ठहराते हुए माना कि महिला आर्थिक रूप से निर्भर है और भरण-पोषण की हकदार है।
इस प्रकार, उसे 20,000 रुपये प्रति माह और अप्रैल 2019 से बकाया राशि मिलने का रास्ता साफ हो गया है।
