देहरादून में एक कथित एनजीओ के जाल में फंसकर उत्तराखंड के पहाड़ी क्षेत्रों की युवतियों के शोषण का गंभीर मामला सामने आया है। आरोप है कि यह एनजीओ भोली-भाली युवतियों को नौकरी का प्रलोभन देकर अपने चंगुल में फंसाता है, उनसे दुर्व्यवहार करता है, उनकी जमा-पूंजी हड़प लेता है, और फेसबुक के जरिए अनुचित गतिविधियों के लिए दबाव डालता है। पीड़िताओं ने देहरादून पुलिस में शिकायत दर्ज की है और पूर्व राज्यपाल भगत सिंह कोश्यारी से मदद की गुहार लगाई है।
एनजीओ के जंजाल में फंसी पहाड़ की बेटियाँ
कोसी घाटी, बेतालघाट, रामगढ़, ताड़ीखेत, और अन्य पहाड़ी क्षेत्रों की कई युवतियाँ इस कथित एनजीओ के जाल में फंस गई हैं। पीड़िताओं का आरोप है कि एनजीओ नौकरी के नाम पर उन्हें देहरादून बुलाता है, उनके बैंक खातों से पैसे निकाल लेता है, और मानसिक उत्पीड़न करता है। कुछ मामलों में, युवतियों को फेसबुक पर लड़कों से दोस्ती करने और वीडियो कॉल के जरिए अनुचित गतिविधियों के लिए मजबूर किया जाता है।
पीड़िताओं की आपबीती
सिमरन बोहरा, चोरगलिया की निवासी, ने अपनी बहन और स्वयं के साथ हुए शोषण की कहानी साझा की। सिमरन ने बताया कि उनकी छोटी बहन को नौकरी का झांसा देकर देहरादून बुलाया गया, जहाँ उसे बंधक बनाकर रखा गया और उसके पास मौजूद 38,000 रुपये लूट लिए गए। सिमरन ने रजिस्ट्रेशन के नाम पर 3,000 रुपये लिए जाने और 20,000 रुपये प्रतिमाह की तनख्वाह का लालच दिए जाने का खुलासा किया। सिमरन ने हिम्मत दिखाते हुए अपनी बहन को इस जाल से निकाला, लेकिन उनका कहना है कि सैकड़ों अन्य युवतियाँ अब भी इस एनजीओ के चंगुल में फंसी हैं।
सिमरन ने नेहरू कॉलोनी थाने में तहरीर देकर कार्रवाई की मांग की है और कुछ संदिग्ध व्यक्तियों के नाम पुलिस को सौंपे हैं। उन्होंने बताया कि उन्हें अब भी फोन पर जान से मारने की धमकियाँ मिल रही हैं।
सुरेंद्र सिंह मेहरा, अल्मियाकाडे गाँव के निवासी, ने बताया कि उनकी बेटी नीलम को मार्च में नौकरी के बहाने देहरादून बुलाया गया। एनजीओ ने नीलम के खाते से एक लाख रुपये से अधिक की राशि निकाल ली और बार-बार घर से पैसे मँगवाने का दबाव बनाया। सुरेंद्र ने कहा कि उनकी बेटी को पहाड़ की ही एक युवती ने जान-पहचान बढ़ाकर इस जाल में फंसाया। बमुश्किल नीलम वहाँ से बचकर निकल पाई।
पूर्व राज्यपाल से मदद की गुहार
शुक्रवार को सिमरन बोहरा अपने पिता भीम सिंह और भाजपा नेता पान सिंह मेवाड़ी के साथ पूर्व राज्यपाल भगत सिंह कोश्यारी से उनके देहरादून आवास पर मिली। उन्होंने एनजीओ के जाल में फंसी पहाड़ी बेटियों को बचाने की गुहार लगाई। कोश्यारी ने मामले की गंभीरता को देखते हुए पुलिस के वरिष्ठ अधिकारियों से बात की और कार्रवाई का आश्वासन दिया।
एनजीओ की शातिर चालें
पीड़ितों के अनुसार, यह कथित एनजीओ बेहद शातिर तरीके से काम करता है:
- युवतियों को नौकरी और आकर्षक तनख्वाह का प्रलोभन दिया जाता है।
- फेसबुक और वीडियो कॉल के जरिए अनुचित गतिविधियों के लिए दबाव डाला जाता है।
- युवतियों को अलग-अलग स्थानों पर रखा जाता है ताकि शक न हो।
- परिवार से संपर्क करने पर पाबंदी लगाई जाती है और बार-बार पैसे मँगवाने का दबाव बनाया जाता है।
पुलिस की प्रारंभिक प्रतिक्रिया
नेहरू कॉलोनी थानाध्यक्ष संजीत कुमार ने बताया कि कुछ युवतियों ने एक ऑनलाइन नेटवर्किंग कंपनी के खिलाफ शिकायत दर्ज की है। यह कंपनी कथित तौर पर सदस्यों को विभिन्न कंपनियों के उत्पाद बेचने के लिए किट प्रदान करती है, जिसके आधार पर मुनाफा देने का दावा किया जाता है। हालांकि, प्रारंभिक जाँच में ऐसा कोई ठोस सबूत नहीं मिला है जिसके आधार पर मुकदमा दर्ज किया जा सके। पुलिस ने मामले की गहन जाँच शुरू कर दी है।
निष्कर्ष
यह मामला उत्तराखंड की भोली-भाली युवतियों के शोषण और ठगी का गंभीर उदाहरण है। कथित एनजीओ के जाल में फंसी सैकड़ों बेटियों को बचाने के लिए त्वरित और सख्त कार्रवाई की आवश्यकता है। सिमरन और नीलम जैसे साहसी पीड़ितों की आवाज ने इस मुद्दे को उजागर किया है, और अब पुलिस व प्रशासन की जिम्मेदारी है कि वे इस शातिर गिरोह का पर्दाफाश करें और प्रभावित युवतियों को न्याय दिलाएँ।