उत्तराखण्ड में बीते कुछ समय से बढ़ते अपराधों के पीछे अवैध हथियार एवं असलहे व्यापकता से सम्मिलित पाये गये हैं। बदमाशों के हौशले इतने अधिक बढ़ चुके हैं कि वे अब राज्य में पुलिस पर फाईरिंग करने से नहीं डर रहे हैं और बेखौफ होकर अवैध असहलों से पुलिस पर ताबड़तोड़ हमले कर रहे हैं, जो अत्यधिक चिंता का विषय अब राज्य के लिए बन चुका है जब राज्य की रक्षक पुलिस ही असुरक्षित है तो आम नागरिकों का क्या ही हाल।
राज्यभर में हो रही इस तरह की घटनाएं पुलिस के अनुशासन, टेनिंग, कार्यशैली एवं अप्रिय घटनाओं के होने पर अकुशलता को दर्शाता है। यूॅ तो पूर्व से ही पुलिस विभाग में भ्रष्टाचार के माध्यम से भर्तियां होने की बात स्वयं राज्य के मा0 मुख्यमंत्री द्वारा स्वीकार्य करते हुए जांच के आदेश दिए गये थे जिसकी जांच गतिमान है।
दूसरी बात यह भी है कि पुलिस आज की चुनौतियों के अनुरूप कितनी कुशल और दक्ष है, यह भी गहन विश्लेषण का विषय है क्योंकि डिजिटाईजेशन और अत्याधुनिक हथियारों के इस काल में पुलिस का दो कदम आगे होना अति आवश्यक है।
किंतु पुलिस का सिस्टम आज भी पुराना और लचीला है। इसमें भर्ती की प्रक्रिया से लेकर कार्यशैली आज भी ब्रिटिशकालीन ही है, जो अत्यधिक धीमी और आज की आवश्यकताओं के अनुरूप किसी भी रूप में फिट नहीं बैठती।
यहां तक की भारत सरकार की चयन प्रक्रिया के माध्यम से आने वाले लोग भी जाॅयनिंग पर कोई ऐसी विशय विशेषज्ञता नहीं रखते हैं जिससे टाॅप टू बाॅटम अप्रोच से कार्य में सुधार हो सके। भारत सरकार की चयन प्रक्रिया से अधिकारियों के आने से भी किस प्रकार सुधार होगा यह सोचना-समझना आवष्यक है क्योंकि पद एवं कैडर आवंटन पूर्णतया अंको पर आधारित होता है न की पुलिस विभाग की आवष्यकताओं और न अपराधों की समझ पर।
साइबर अपराधों पर कार्य करने हेतु आज भी भर्ती नियमावली मंें परिवर्तन नहीं हो पाया है। तकनीकि कार्यकुशल लोगों को पुलिस में भर्ती करने का कोई स्पष्ट पैमाना आज तक स्थापित नहीं हो पाया है तथा तकनीकि कौशलता का अत्यधिक कार्य आउटसोर्स के माध्यम से ही किया जाता है।
इसके अलावा न ही साइबर एक्सपर्ट हैं न ही यहां अपराध के दौरान व्यापक निरीक्षण के लिए खोजी प्रवृत्ति अथवा आउट आॅफ बाॅक्स सोच-समझ के एक्सपर्ट लोग भर्तीं किए कौशल भर्ती किए जाने का कोई स्पष्ट प्रावधान यहां अभी तक भी नहीं है।
स्पष्ट आख्या एवं अपराध स्थापित न हो पाने के कारण समय के साथ जांच ढ़ीली पड़ती रहती है, और अपराध और अभियोजन तक दम तोड़ देते हैं। अपराध रिपोर्ट स्पष्ट रूप से स्थापित न होने के कारण वर्षों बाद भी न्याय मिलने के भी कार्य लटके रहते हैं जिसकी जवाबदेही भी तय नहीं की जाती है। कुल मिलाकर खाने-खपाने की प्रवृत्ति तक ही सीमित हो चुकी है। तथा इसके आज की आवश्यकताओं के अनुरूप माडर्नाईजेशन और संचालन की नितांत आवश्यता होती है तांकि टे्सिंग से लेकर सजा दिलाने तक का कार्य पूरी सजगता से किये जा सके। भ्रष्टाचार जैसी कुपृथा का पुलिस विभाग में कदाचित भी होना अत्यंत हानिकारक होगा जिससे कार्यव्यवस्था से लेकर न्याय व्यवस्था तक चरमराने से अराजकता स्थापित होने का खतरा हमेशा रहेगा।
अतः बढ़ते अपराधों के लिए सिर्फ पूरी पुलिस को जिम्मेदार मानना भी गलत होगा क्योंकि कर्मचारी अपनी कार्यक्षमता से अधिक कार्य कर रहे हैं जिसका दबाव स्वयं एवं उनके परिवार पर हमेषा बना रहता है। सामाजिक हित के इस विशय पर गहनता से विचार-विमर्ष किया जाना अति आवष्यक प्रतीत होता है।