Wed. Nov 20th, 2024

अस्कोट: राजमहल की विश्व धरोहर की चाह रह गई अधूरी

688 साल तक अस्कोट रियासत पर राज करने वाले कत्यूरी राजवंश के पाल राजाओं के ऐतिहासिक महल को विश्व धरोहर घोषित करने की पहल परवान नहीं चढ़ पाई। राजवंश के वारिस चाहते हैं कि 100 कमरों वाले राजमहल का संरक्षण भारतीय पुरातत्व विभाग करे।

अस्कोट रियासत का सफर वर्ष 1279 से प्रारंभ हुआ। अभयदेव पाल रियासत के पहले राजा थे। वर्ष 1614 में रियासत की राजधानी अस्कोट से ढाई किमी दूर लखनपुर में थी। वर्ष 1615 में तत्कालीन राजा महेंद्र पाल प्रथम ने अस्कोट में राजमहल का निर्माण कराया। दो भवनों वाले भव्य राजभवन में कई खूबियां हैं।

राजमहल के निर्माण के पश्चात महल परिसर में पाल राजा ने अपने कुल देवता नारिंग देवल की स्थापना कराई। इसलिए राजधानी क्षेत्र का नाम देवल दरबार पड़ा। मंदिर में शिव पार्वती और लक्ष्मीनारायण की काले पत्थर की प्राचीन मूर्तियां स्थापित हैं।

राजा महेंद्र पाल प्रथम के बाद जैत पाल, बीरबल पाल, अमर पाल, अभय पाल द्वितीय, उत्छव पाल, विजय पाल, महेंद्र पाल द्वितीय, बहादुर पाल, पुष्कर पाल, गजेंद्र पाल, विक्रम पाल और अंतिम राजा टिकेंद्र बहादुर पाल ने इस ऐतिहासिक महल से रियासत का संचालन किया।

अस्कोट में पाल राजाओं का शासन वर्ष 1967 तक रहा। महल इन मायनों में भी विशेष है कि प्राचीन समय में कैलास मानसरोवर जाने वाले यात्रियों के भोजन और रात्रि विश्राम की व्यवस्था राजमहल में होती थी। पाल राजवंश के वर्तमान वारिस राजमहल को सरकार के संरक्षण में देने को तैयार हैं। लगभग सात सदी तक अस्कोट में पाल राजाओं ने राज किया है। पाल राजवंश के पास राजशाही के दौर के अहम दस्तावेज और ऐतिहासिक वस्तुएं हैं। मैसूर के राजा की कैलास यात्रा के साथ ही तमाम ऐतिहासिक दस्तावेज पाल राजवंश की धरोहर हैं, जो संजोने लायक है।

By devbhoomikelog.com

News and public affairs

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *